टीएन शेषन ने कराया था चुनाव आयोग की
ताकत का अहसास
-परमार्थ संदेशगाजियाबाद। आज चुनाव आयोग आचार संहिता का उल्लंघन करने वाले नेताओं के सामने बेबस दिखाई पड़ रहा है। चुनाव आयोग का कोई खौफ बड़बोले नेताओं में दिखाई नहीं पड़ा। चुनाव आयोग ने आचार संहिता का उल्लंघन करने पर मायावती, योगी आदित्यनाथ, मनेका गांधी व आजम खान, नवजोत सिंह सिंधू के चुनाव प्रचार करने पर कुछ घंटों का प्रतिबंध जरूर लगाया। जबकि टी.एन. शेषन जब चुनाव आयुक्त थे तब बड़े से बड़ा नेता तक खौफ खाते थे। उनकी सख्ती के चलते हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल को पद छोड़ना पड़ा था। जबकि इस चुनाव में मुख्य चुनाव आयक्त राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह के खिलाफ कुछ नहीं कर पाया। शेषन के चुनाव आयुक्त बनने से पहले आचार संहिता सिर्फ कागजों में थी, लेकिन शेषन ने इसे कड़ाई से लागू किया। पहले चुनाव प्रचार को लेकर नियमों का पालन नहीं होता था। न । त् । १ ज । उम्मीदवार मतदाता परिचय पत्र भी शेषन की देन मंत्रियों की क्या बिसात...राज्यपाल को नहीं बक्शा आज देश में लगभग 99% वोटर्स के पास पहचान पत्र है, तो उसका क्रेडिट भी शेषन को जाता है। उनके कार्य काल में इसकी शुरूआत हुई और 1996 में इसका प्रयोग शुरू हुआ। क्या हुआ फायदाः फर्जी वोटिंग रोकने में ये सबसे बड़ा हथियार साबित हुआ है90 के दशक में बिहार, यूपी ही नहीं दिल्ली जैसे शहरों में लोग शिकायत करते पाए जाते थे कि वोट डालने पहुंचे तो पता चला कि उनका वोट पहले ही पड़ चुका है। ये शिकायत दूर हुई।
मंत्रियों की क्या बिसात...राज्यपाल को नहीं बक्शा
मंत्रियों की क्या बिसात...राज्यपाल को नहीं बक्शा 1993 में हिमाचल के तत्कालीन राज्यपाल गुलशेर अहमद बेटे का प्रचार करने सतना पहुंच गए। अखबारों में तस्वीर छपी। गुलशेर को पद छोड़ना पड़ा। लालू प्रसाद यादव को सबसे ज्यादा जीवन में किसी ने परेशान किया...तो वे शेषन ही थे। 1995 का चुनाव बिहार में ऐतिहासिक रहा। लालू, शेषन को जमकर लानतें भेजते। कहते- शेषनवा को भैंसिया पे चढ़ाकर के गंगाजी में हेला देंगे। बिहार में चार चरणों में चुनाव का ऐलान हुआ और चार बार ही तारीखें बदली गई। यहां सबसे लंबे चुनाव हुए। पूरे चुनाव में लाला प्रसाद यादव के चेहरे पर शेषन का खौफ छाया रहाबेहिसाब और बेहिचक खर्च करते थे। आचार संहिता लागू होने के बाद अनेक सख्त निर्णय उन्होंने चुनाव प्रचार पर नजर रखनी शुरू की। रात 10 बजे के बाद प्रचार पर रोक लगाई। कैंडिडेट के लिए चुनाव खर्च का हिसाब चुनाव के दौरान नियमित देना अनिवार्य किया उससे फिजूलखर्ची रुकी। दलों और उम्मीदवार की मनमानी पर रोक लगाने के लिए पर्यवेक्षक तैनात करने की प्रक्रिया को शेषन ने ही सख्ती के साथ लागू किया। इसका नतीजा ये हुआ कि नौकरशाही को काम करने की आजादी मिली और हिंसा रुकी। 1995 में बिहार के चुनाव को इसी वजह से याद किया जाता है। इससे चुनाव में मतदान बूथ लूटने जैसी घटनाएं बेहद कम हो गईं। केंद्रीय बलों की तैनाती, राज्य मशीनरी का दुरुपयोग रोकने के लिए केंद्रीय बलों की तैनाती को प्रभावी बनाया। इससे राज्यों में पुलिस के बूते मनमानी करने की नेताओं की आदत पर रोक लगी। मतदाताओं का रखा ध्यानः शेषन ने नेताओं पर सख्ती की तो वोटर्स का ध्यान रखा ताकि वे बिना डरे वोट डाल सके। इसके लिए उन्होंने गिनती से पहले वोट मिक्स करने के निर्देश दिए। इससे जीतने के बाद नेता बदले की भावना से काम नहीं कर पाता।