इधर डिब्बे में विसरा बंद उधर लोगों का आक्रोश खत्म

आक्रोश टालने का बहाना बनकर रह जाती है विसरा जांच रिपोर्ट


 इधर डिब्बे में विसरा बंद उधर लोगों का आक्रोश खत्म


मौत की गुत्थी सुलझाने वाली रिपोर्ट महीनों के बाद भी हैं लापता


पुलिस अधिकारी और वकील भी मानते हैं जांच में पड़ता है काफी असर


 गाजियाबाद। जब मौत की गुत्थी पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी नहीं सुलझती है तो विसरा संरक्षित कर उसकी जांच के लिए प्रयोगशाला को भेजा जाता है। लेकिन प्रयोगशाला से कब विसरा जांच रिपोर्ट आएगी इसका कुछ पता नहीं रहता है। विसरा जांच रिपोर्ट के आने तक पुलिस की जांच भी आगे नहीं बढ़ पाती है और आरोपियों पर कड़ी कार्रवाई भी नहीं हो पाती है। लोगों के आक्रोश को खत्म करने के लिए पुलिस आखिर में विसरा जांच रिपोर्ट का ही सहारा लेती है। अपने गाजियाबाद में कई ऐसे बड़े मामले हुए हैं जिनमें मौत की गुत्थी अभी तक नहीं सुलाती है। ऐसे मामलों की विसरा जांच रिपोर्ट का पुलिस इंतजार करने का बहाना बनाकर पीड़ितों को थाने से टरका देती है। गाजियाबाद के प्रत्येक थानों की पुलिस द्वारा मोर्चरी में लाए गए शवों को पोस्टमार्ट के बाद उनका विसरा संरक्षित किया गया है। सबसे अधिक इन्दिरापुरम थाने से संबंधित शवों के विसरा रिपोर्ट लंबित पड़े हैं। इस थाना क्षेत्र के 22 मामलों में से सिर्फ 2 मामलों की रिपोर्ट आई है। कहना न होगा उलझे हत्याकांड को सुलझाने के लिए की जाने वाली विसरा जांच रिपोर्ट महल मीठी गोली बन कर रह गई है। घटनास्थल पर आक्रोशित भीड़ और गुस्साये परिजनों को शांत करने के लिए बिसरा जांच का सहारा लिया जा रहा है। विसरा रिपोर्ट आने की रफ्तार से पता चलता है कि हत्या की गुत्थी सुलझाने वाली यह महत्वपूर्ण रिपोर्ट गुस्साये लोगों को तत्काल शांत करने का बहाना बनकर रह गई है। उधर लोगों नेवला व जंगली जंतु चटकर जाते हैं लैब में पड़े विसरा? पुलिस द्वारा लैच को भेजी जाने वाली विसरा को न तो लैब के कर्मचारी रुचि लेते हैं और न ही पुलिस विभाग। रिपोर्ट के लिए न होकोई दबाव डाला जाता है। इसका नतीना यह होता है कि यह विसरा लैब में ही पड़े रह जाते हैं। हत्याकांड से जुड़े लोगों की धड़कनें बड़ती रहती है। हल्या या मौतों को गुत्थी उलझी ही रहती है। बताया तो यह भी जाता है कि लैच में पड़े विसरा को नेवला, चूहे. या अन्य जंगली जीव चटकर जाते हैं। विसरा में पोस्टमार्टम के दौरान निकली गये विसरल पार्ट यानी किडनी, लीवर, दिल, पेट के अंगों का सैंपल होता है। इसकी जांच केमिकल एक्जामिनर करते हैं। इससे मौत के कारण, मौत का समय और बॉडी के किस पार्ट के प्रभावित होने से मौत हुई है इसका का पता कब होती है विसरा जांच जब हत्या या संदिग्ध दुर्घटना की गुत्थी इतनी उलझ नाती है कि पुलिस आसानी से सुलझा नहीं पाती तो विसरा को जांच का ही सहारा लेना पड़ता है। महानगर के महिला सहित 16 पुलिस थानों से पिछले 11 महीनों में 82 विसरा संरक्षित करके जांच के लिए भेजे गये हैं लेकिन इनमें से मात्र 16 मामलों में ही रिपोर्ट आ सकी है। बाकी के पीड़ित अभी भी रिपोर्ट आने का इंतनार कर रहे है। फोरिसिक साइंस लेबोरेट्री के डिप्टी डायरेक्टर डॉ. सुधीर कुमार बताते हैं कि विसरा की जांच में 15 दिन का समय लगता है जबकि 11 महीने बाद भी जांच रिपोर्ट नहीं मिल पाई है उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी अरविन्द जैन व सीनियर क्रिमिनल एडवोकेट पंकन शर्मा यह स्वीकार करते है कि विसरा की जांच रिपोर्ट संदिग्ध हत्या के मामले में बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। अक्सर ये रिपोर्ट समय से नहीं मिल पाती है। इससे केस प्रभावित होते है। 


लटके पड़े हैं ये संगीन मामले


गाजियाबाद जीआरपी क्षेत्र में इस वर्ष एक दर्जन से अधिक शव मिले हैं। इनमें से आठशवे की पहचान नहीं हो सकी है। इनकी विसराजाच रिपोर्ट नआने से मामले लटके पड़े हैं। इनकी शिनाखा नहीं हो पा रही है। कविनगर थाना क्षेत्र के गांव रहीसपुर में गत 22 सितम्बरको गांव के बाहरी हिस्से में विटोरे में आग लगने के बाद कुछ हडिडयां मिली। इसी बीच एक युवक के लापता हो जाने से हत्या को लेकर दो पक्ष उलझे हुए हैं। रिपोर्ट अभी नहीं मिली है।हाथरस निवासी 52 व्यक्ति कविनगरबिजलीघरमे तैनात थे, जोलालकके राजकपाउडमेरहते थे। उनकी मौत हो जाने परफी ने बेटे पर हत्या करने का आरोप लगाया है लेकिन अभी तक इस मामले की विसरा रिपोर्ट नहीं मिली है। कविनगर थाना क्षेत्र के केशवकुंज निवासी राजकुमार राज शतरंज के इंटरनेशनल आर्बिटर थे। 25 अक्टूबर को शाम को उनकी मौत हो गई थी। उनकी विसराजव रिपोर्ट नहीं मिल सकी है। इसी तरह 12 जुलाई को एनएच-9पर आईएमएसकॉलेज के पास युवती की हत्या कर शव फेंक दिया था। शिनाख्खनहो पाने के कारण विसराजंच के लिए भेजा गया था। अभीतक रिपोर्ट नहीं मिली है।