सांसद-विधायकजैसेनसीबकहां सरकारी अधिकारियों के

सांसद-विधायकजैसेनसीबकहां सरकारी अधिकारियों के


106 दिन जेल में रहने के बाद पी चिदंबरम फिर पहुंच जाते हैं संसद में


 बलात्कार का दोषी कुलदीप सेंगर के नाम से नहीं हट रहा विधायक का शब्द जनसेवक-सरकारी सेवकों में फर्क क्यों, सरकारी अधिकारी-कर्मचारी को कोर्ट के निर्णय तक करना पड़ता है फिर से बहाली के लिए इंतजार 


नई दिल्ली। हमारे देश में सरकारी अधिकारी व कर्मचारी तो सरकारी सेवक कहलाया जाता है क्योंकि सरकारी कर्मचारी को जनता की समस्याएं सुनने व उनका निराकरण करने हेतु सरकारी नौकरी पर रखा नाता है। इनको वेतन भी सरकारी सनाने से मिलता है। सभी विभाग के कर्मचारियों के चयन से पहले उनकी पुलिस द्वारा जांच कराई जाती है कि प्रश्नगत कर्मचारी का चरित्र अपराधिक तो नहीं रहा है। उसके खिलाफ पुलिस थाने में कोई मुकदमा तो दर्ज नहीं है। इसके उपरान्त ही अमुक कर्मचारी को सरकारी नौकरी के लिए हरी झंडी मिल पाती है। इसके साथ ही उस कर्मचारी की मुख्य चिकित्सा अधिकारी द्वारा शारीरिक जांच की नाती है कि कर्मचारी अस्वस्थ व विकलांग तो नहीं है। शारीरिक रूप करने इनको चेतन भी सरकार से ठीक पाए जाने पर ही कर्मचारी को गवर्नमेंट सर्विस के योग्य माना जाता है। इसके साथ ही जिस पद के लिए आवेदन किया है, उस पद की योग्यता हेतु न्यूनतम शैक्षिक व तकनीकी शिक्षा भी पदानुसार निर्धारित होती है, जिससे कम होने पर उस पद के लिए आवेदन का अधिकार ही नहीं होता है। इसके साथ ही सरकारी कर्मचारी की सेवा में आने के लिए अधिकतम उम्र सीमा भी निर्धारित होती है। यदि उस उम्र सीमा से एक दिन भी ज्यादा होने पर आवेदक को अयोग्य घोषित कर दिया जाता है। उपरोक्त बातें कोई नई नहीं है, सभी सरकारी नौकरी करने वाले अथवा पड़े-लिखे लोग भली-भांति जानते हैं। यह सबकुछ बताने को लेकर आपके मन में यह सवाल जरूर आ रहा होगा क्यों यह बाते सरकार पर उस पद के होता है। इसके बताई जा रही हैंदरअसल 'परमार्थ संदेश' आपको सरकारी सेवक व जनसेवक (नेता नी) के बीच तुलनात्मक कुछ बातों को जानकारी देना चाहता है.. दरअसल पिछले दिनों पूरे देश ने टीवी व अखबारों में पूर्व केन्द्रीय वित्त मंत्री एवं वर्तमान में लोकसभा के सदस्य पी चिंदबरम को गिरफ्तार किया गया था। 106 दिन यानी 21 अगस्त से लेकर चार दिसंबर तक पी चिंदबरम साहब जेल में रहे। चार दिसंबर को नेल से छूटने के बाद अगले दिन यानी पांच दिसंबर को संसद में चल रहे सत्र में भाग लेने पहुंच गए। भ्रष्टाचार के आरोप में घिरे पी चिंदबरम को लोकसभा सत्र में भाग लेते हुए देखकर आपको हैरानी तो हुई होगी, लेकिन आपकी कोई प्रतिक्रिया व्यक्त न करना और इसको लेकर विरोध न प्रकट करना ही सबसे बड़ा दुर्भाग्य है। लेकिन जब कोई सरकारी अधिकारी या कर्मचारी भ्रष्टाचार के आरोप में जेल जाता है और जमानत पर छूटकर आता है तो नौकरी पर नहीं रखा जाता है। केस फाइनल होने तक वे दोबारा ड्यूटी ज्वाइन नहीं कर सकते हैं। हाल ही में गाजियाबाद में इंस्पेक्टर लक्ष्मी चौहान व दीपक शर्मा भ्रष्टाचार के आरोप में गिरफ्तार कर जेल भेने गए हैं। यदि वे जमानत पर छूटकर आने के बाद फिर से वदी पहनकर थाने में तैनाती पा लें तो आपको कैसा लगेगा। (हालांकि ऐसा नहीं होता है)। यही वह अंतर नो जनसेवक और सरकारी सेवक में होता है। होना तो यह चाहिए कि जिस तरह सरकारी अधिकारी व कर्मचारी को केस फाइनल होने तक नौकरी पर नहीं रखा जाता है और वह सस्पेंड/बखास्त रहता है, उसी तरह जनसेवक पर भी यही कानून लागू होना चाहिए। आपको विस्तार से बताते हैं कि जनसेवक जिन्हें हम सांसद, विधायक व महापौर के रूप में जानते हैं। इनमें से ही केन्द्र व राज्य सरकारों में मंत्री भी बनते हैं। इन सभी को भी उसी सरकारी खजाने से वेतन व सुविधाएं मिलती हैं, जिस सजाने से सरकारी कर्मचारी को मिलती हैं। लेकिन दोनों की चयन पद्धति व नियमावली में बहुत अन्तर है। जहां सरकारी सेवक का अच्छा आचरण, योग्य शिक्षा निधारित उम्र सीमा तथा स्वस्थ मन व शरीर होने पर ही उसे सरकारी सेवक बनाया जाता है वहीं इसके विपरीत जनसेवक के लिए कोई भी योग्यता का मापदंड नहीं है। जनसेवक को चुनाव लड़ने हेतु न्यूनतम उम्र की सीमा तो जरूर है, लेकिन अधिकतम उम्र की सीमा कोई नहीं है। पूर्व प्रधानमंत्री तथा वर्तमान में राज्यसभा सदस्य डॉ. मनमोहन सिंह की उम्र इस समय लगभग 86 वर्ष है। इस उम्र के वह राज्यसभा व लोकसभा में अकेले नहीं है। बल्कि 60 वर्ष से ऊपर के सांसदों की संख्या दोनों सदनों में 60 प्रतिशत से ऊपर होगी। इस उम्र में सरकारी सेवक को सरकारें, सरकारी सेवा के अयोग्य मानकर घर भेन (रिटायर्ड) देती हैं। अब यदि चाल-चलन व आपराधिक छवि की तुलना करें तो ननसेवक व सरकारी सेवक के बीच बहुत असमानता हैं। जहां सरकारी सेवक के विरुद्ध पुलिस जांच में थोड़ी सी कमी मिली वहीं उसे सरकारी विभाग में ज्वाइन नहीं कराया नाएगा। ठीक इसके विपरीत जनसेवक पर चाहे जितने भी मुकदमे चल रहे हों, वह चुनाव लड़ते समय जेल में बंद हो, इससे जनसेवक की योग्यता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। मुख्य चुनाव आयुक्त द्वारा केवल इतना प्रतिबंध जरूर लगाया गया है कि यदि नेता जी को किसी अपराध में दो वर्ष से कम को सना हुई है तो उन्हें चुनाव लड़ने से नहीं रोका जा सकता। यही कारण है कि वर्तमान की लोकसभा में बड़ी संख्या में जनसेवक ऐसे हैं जिन पर बलवा, हत्या, डकैती, 420 व बलात्कार के मुकदमे चल पांच दिसंबर को पूर्व मंत्री पी.चिदम्बरम को संसद में बैठकर बहस करते हुए सबने देखा। अचानक से संसद में बहत्त करते हुए देखते हुए बरबस ही यह सवाल मन में आया कि भ्रष्टाचार के आरोप में जेल भेने गए चिदंबरम नी को संसद की कार्यवाही में भाग लेने से क्यों नहीं रोका, मालूम करने पर पता चला कि हमारे संविधान में जनसेवकों को इसके लिए छूट है। इसी तक उन्नाव रेप कांड में दोषी कुलदीप सेंगर की विधायकी भी अभी समाप्त नहीं की गई है। जेल में बंद कुलदीप सेंगर को बलात्कार के मामले में आजीवन कारावास की सना हुई है। विधायक होने के नाते जेल मैनुअल के अनुसार विशेष सुविधाएं दी जाती हैं जबकि सरकारी कर्मचारियों को ऐसा कुछ नहीं दिया जाता है। क्या इस तरह कोई सरकारी कर्मचारी को यदि किसी अपराध में पुलिस दो दिन के लिए भी जेल भेज दे तो उसी सरकारी सेवा के अयोग्य मानकर न केवल निलम्बित कर दिया जाता है बल्कि उस पर जांच कमेटी भी बैठा दी जाती है। जांच कमेटी की रिपोर्ट आने के बाद ही अमुक कर्मचारी को पुनः बहाल किया जाता है। इस तरह के बहुत से दूसरे भी विरोधाभास सरकारी सेवकों व जनसेवकों के बीच में है। अब आप देखिए कि कितना दुर्भाग्य है कि उन्नाव के बांगरमऊ क्षेत्र का विधायक नाबालिग लड़की से बलात्कार, पिता व परिजनों की हत्या में न केवल दोषी करार दिया बल्कि मरते दम तक जेल की सलाखों के पीछे रहना पड़ेगा, फिर भी वह अभी तक विधायक ही कहलाया जा रहा है। कुलदीप सेंगर के नाम से पहले विधायक शब्द नहीं हटाया गया है। आखिर क्यों उसकी विधायिका सत्म नहीं की जा रही है। देश में जब तक एक समान कानून प्रणाली लागू नहीं होती है तब तक ऐसे ही ऐसे लोग सीना चौड़ाकर सामजिक प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाते रहेंगे।