इस स्तंभ में प्रकाशित करने के लिए अपने बचपन की इसी तरह की कुछ यादगार स्मृतियां हमें अपने फोटो सहित भेज सकते हैं
कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन
हमारे समाचार पत्र के एक नियमित पाठक ई. एच.सी वाशिष्ठ के इस स्तम्भ में प्रकाशन हेतू अपनी हेतू अपनी जीवन की कुछस्मृतियां सजों कर भेजी है। श्री एचसी वाशिष्ठ के द्वारा भेजी उनकी कुछ यादे, मै अलीगढ़ जिले की सासनी की सासनी तहसील के अंतर्गत एक गांव में अपने माता पिता के साथ रहता था। घर में खेतीबाड़ी होती थी। जैसे ही मै हाई स्कूल की कक्षा तक पहुंचा तो कॉलेज से वापस आते ही पिता जी खेत में मक्का खाने के लिए भेज देते थे। खेत में कोई पक्षी कुकडी ना खा जाएं अथवा कोई जानवार खेत में घुस कर पकी पकाई फसल को ना उजाड दे। इसलिए खेत में एक उंची भी जगह बनाई जाती थी। जिस पर चढ़कर पूरा खेत दूर तक दिखाई देता था। जैसे ही कोई पक्षी दिखाई देता वैसे ही मै होई-होई करके हल्ला मचा कर पक्षी को उड़ा देता था या कोई कंकर मार कर भगा देता था। खेत में उस समय का गांव का खुला हुआ वातारण मुझे आज भी गांवों की ओर खीच ले जाता है। गांवों का बह जीवन भी क्या था आज आरओ का पानी भी पीने में डर लगता है पहले पूरा गांव टयूब वैल से निकल कर जो पानी खेतों की नालियों से जाता था उसमे से चुल्लू में पानी लेकर पीते थे और कभी कोई आदमी पानी के कारण बीमार नही होता था। रात को पूरा परिवार गांवों में घर के बाहर सड़कों पर ही खाट बिछा कर सोते थे ना कोई चोरी का डर था ना ही सोने में लूट पाट का। पूरे गांव में सभी मिलजुल का रहते थे। सारे त्यौहार धूमधाम से मानते थे। आज की तरह स्वार्थ उस समय के लोगों में नही था। मुझे मेरा बचपन व मेरा गांव आज भी बहुत याद आता है।