महारानियां भी सुन्दरता के लिए गधी के दूध से नहातीं थीं रोज

औषधियों के जनक हिप्पोक्रेट्स ने की थी गधी के दूध की खोज


महारानियां भी सुन्दरता के लिए गधी के दूध से नहातीं थीं रोज


झुर्रियां मिटाने, रंग गोरा रखने के लिए वरदान है गधी का दूध


नई दिल्ली। गधे को भले ही बेवकूफ या मंदबुद्धि का पर्यायवाची माना जाता है लेकिन इसकी मादा यानी गधी के दूध की खासियत आज से हजारों साल पहले मित्र की सभ्यता के समय ईस्वी पूर्व 370-470 में औषधियों के जनक यानी फादर आफ मेडिसिन हिप्पोक्रेट्स ने सौन्दर्य प्रसाधन के रूप में की थी। सबसे चौकाने वाली बात यह है कि उपेक्षा की दृष्टि से देखे जाने वाले इस पशु के दूध का इस्तेमाल उस समय आम इंसानों द्वारा नहीं बल्कि रानियों और महारानियों द्वारा सुंदरता बनाये रखने के लिए किया जाता था। यही नहीं बुलेटिन-डे एल एकेडमी मायडिसिन 1882 में डॉ. पैरट की रिसर्च रिपोर्ट में यह बताया गया है कि फ्रांस में 19 वीं शताब्दी के दौरान दुधमुहे अनाथ शिशुओं को गधी का दूध पिलाया जाता था, इसके साथ ही नाजुक बच्चों, बीमार और बुजुर्गों के इलाज के लिए गधी का दूध बिकता था। इसकी वजह से बीसवीं शताब्दी तक ग्रीस, इटली, बेल्जियम, जर्मनी और स्विटजरलैंड में गधों के फार्म विकसित हुए हैं। जहां गधी के दूध का कारोबार होता था। प्राचीन काल में मिस्र देश की रानी क्लियोपाट्रा के बारे में कहा जाता है कि वह खुद को युचा और सुंदर दिखने के लिए गधी के दूध से नहाती थीं। ऐसा माना जाता है कि इस स्नान के लिए कम से कम 700 गधियों का दूध क्लियोपाट्रा के लिए लाया जाता था। रोम के शासक नीरो की दूसरी पत्नी पोप्पोए सबीना भी अपनी खूबसूरती को बरकरार रखने के लिए गधी के दूध का इस्तेमाल करती थीं। 1780-1825 के बीच नेपोलियन की बहन पाउलिन बोनापार्ट भी अपनी सुंदरता को लम्बे समय तक बनाये रखने के लिए गधी के दूध का प्रयोग करती थीं।


थीं।आम तौर पर यह माना जाता है कि गधी के दूध से झुर्रियां नहीं पड़तीं। झुर्रियां वाली खाल खत्म हो जाती है और उसकी जगह नई खाल चेहरे पर आ जाती है। इससे चेहरे की चमक बढ़ जाती है और गोरापन भी और अधिक बड़ जाता है। इसको देखने पहले के जमाने में अनेक महिलाओं द्वारा दिन में सात बार गधी के दूध से चेहरे पर इस्तेमाल किये जाने की जानकारी मिली है। कहा जाता है कि रोमन शासक नीरो की दूसरी पत्नी पोप्पए पहले इसी तरह अपने चेहरे पर गधी के दूध का इस्तेमाल करती थी। फिर धीरे-धीरे उसने भी गधी के दूध से स्नान करना शुरू कर दिया । यात्रा के दौरान सेना की एक टुकड़ी गधी के दूध के इंतजाम के लिए तैनात की जाती थी। 


जाती थी। विभिन्न स्तनधारी पशुओं के दूध के तत्वों के बारे में प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार गधी का दूध प्रोटीन, लैक्टोस और ऐश के बारे में मां के दूध के समान ही होता है। इसके बाद गाय, भेड़ और बकरी का दूध आता है। दूध में मौजूद संघटक पानी, ठोस पदार्थ, वसा, लैक्टोज, प्रोटीन, खनिज वसाविहिन ठोस पदार्थ होते हैं। अगर हम दूध में मौजूद पानी की बात करें तो सबसे ज्यादा पानी गधी के दूध में 91.5% होता है। उसके बाद घोड़ी के दूध में 90.1%, गाय के दूध में 87.2%, ऊंटनी के दूध में 86.5% और बकरी के दूध में 86.9% होता है।