मेरी राय
होली ऐसे तो हो-ली'
जैसे ही फाल्गुन का महीना प्रारम्भ होता था तभी से वातावरण में होली का उल्लास व मस्ती चुड़ नाया करती थी। बच्चे, बूढ़े और जवान हफ्तों पहले से ही होली के रंग में पुत्ते नवर आने लगते थे। कहीं बने सड़क पर बिजली के तार पर कांटा लगाकर, लोगों के सिर से टोपी खींच लेते थे। (आपको याद होगा कि पहले टोपी को पहनने का प्रचलन भी बहुत ही था प्रचलन भी बहुत ही था जबकि आजकल तो इक्का-दुक्का आदमी ही टोपी पहनता है, वह भी गांव देहात में)। वहीं कुछ बच्चे आलू को आधा काटकर, उस पर 'चोर' या 'श्री 420' गोदकर ठप्पा बना देते थे और आलू के ठप्पे को काले रंग में लगाकर सड़क पर चलते आदमी की कमर पर पीछे से निशान लगा देते थे। 'पीड़ित' व्यक्ति को इसका पता जब चलता था जब कोई अन्य व्यक्ति उसका मजाक बनाकर उसे उसके बारे में बताता था। लेकिन पहले इतना सब कुछ हो जाने के बाद पीड़ित व्यक्ति, उसे आन की तरह दिल पर नहीं लेता था, जैसे आज छोटी-छोटी बातों पर बड़े-बड़े झगड़े हो जाते हैं, यहां तक कि झगड़ों में हल्याएं होना सामान्य सी बात हो गई है। वैसे भी पहले के लोगों में, आपस में बहुत समाई थी। मनाक करने व उन्हें सहन करने की हिम्मत थी। इसीलिये उस समय होली के त्यौहार पर बहुत मजा आता था। इसीलिये उस समय होली के त्यौहार पर बहुत मजा आता था। गंवों में तो बहुत ही ज्यादा गन्दी होली होती थी, लोग एक दूसरे को कीचड़ व गोचर में लिटा देते थे, लेकिन फिर भी न कोई झगड़ा करता था ना ही बीमार पड़ता था। आज तो होली पर आदमी ही आदमी से बहुत दूर हो गया है। पहले गजियाबाद की तरह दूसरे शहर व कस्बों में भी केवल एक ही जगह होली जलाई जाती थी। वहीं सब अपनी जौ की बालियों को लेकर, परिवार सहित आते थे तथा होलिका दहन करके एक दूसरे को रंग गुलाल लगाकर बधाई देते थे।
होली के दिन टेसू के फूलों का रंग बनाकर उसे 'ताम लोट' से मारते थे। 'ताम लोट' शब्द आज के युवाओं के लिये जरूर नया होगा लेकिन पुराने लोगों को यह शब्द पढ़कर अपना बचपन याद आ जायेगा। 'नाम लौट' एक टिन का एक लम्बा सा डिव्या होता था, जो ऊपर से खुला होता था, इसमें एक साइड में हैंडिल लगा होता था। इसमें रंग भरकर हैंडिल पकड़ कर सामने वाले की कमर पर रंग पूरी ताकत से फेंका जाता था, तामलोट में भरे रंग की चोट कभी-कभी इतनी ज्यादा होती थी कि सामने वाला बिलबिला जाता था और होली का स्वरूप बदलते-बदलते आज इतना परिवर्तित हो गया है कि हमें लगता ही नहीं है कि हम पहले वाली होली का त्यौहार मना रहे हैं पहले के मुकाबले तो अबकी होली मात्र औपचारिकता लगती है।
लेकिन इस बार तो 'कोड़ में खान' और हो गई कि चीन से 'कोरोना' नामक वायरस को आतंक इतना छा गया है कि लोग इस बार होली पर शायद ही अपने घर से निकले और जो निकल भी आये तो वह अपने चेहरे को मास्क व हाथों को दस्ताने से बिलकुल इस तरह से कवर करके आयेंगे, जैसे होली नहीं खेलने जा रहे बल्कि कोई अपरेशन करने जा रहे हों। इस वायरस के डर से आदमी, दूसरे आदमी से हाथ मिलाने को भी तैयार नहीं है। ____ यदि कोई गलती से किसी आदमी को होली पर रंग लगा भी देगा तो सामने वाला डर के मारे कई चार सैनेटाइनर से हाथों को धोएगा। इस तरह तो इस बार की होली तो हो ली।
राय है कि होली सालभर का ऐसात्यौहार है जिस पर दोस्तों के दिलके मैल दूर होजाते हैं तथासबपुरानी बातोंको भूलकर गलेलग जाते है।इसबार तो पहलेहीइन्द्रदेव ज्यादाप्रसन्न है कि स्वयऊपर से अपनी पिचकारी' से होली खेल रहे हैं साथ-साथ 'ओले' नामक प्रसाद भी भेज रहे है, यदि मंसमइसी तरह का रहाते इसबार होली पर पानी से खेलनाशायद स्वास्थ्य के लिये उचित नहीं होगा। होली का आनन्द जहा इसबर वर्षा ने बिगाहा है, वही कोरोना वायरस के कारण लोगघर में दुबक सकते है। जबकि भारत मेइसवायरसकाइतना खतरानही है जितनीदहशत है।पूरे देश में केवल 31 लोगसंक्रमित है जबकि हमारे देशकी आबादी लगभगएकसपतीसकरोड़ है।हमभारतवासी बेमतलब में ही मीडिया द्वारा फैलाये जा रहे इसखौफ के शिकार हो रहे है। भारत में 31स्क्रमित रोगी भी वही है जो बाहर देशों से आये है या अपने परिचितों के यहा विदेश से आकर रुके है।
मेरातो विचार है कि हम थोड़ीसावधानी तो जरूर बरतें लेकिन सालभर मे आयेहर्षोल्लासके इसत्यौहारकामजा खराब नहीं करना चाहिए।नहीते इसतरह होली तो 'होली'।