Meri Ray

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कुटीतियों में जुड़ा एक नया अध्याय प्री वेडिंग विडियो


मुझे अपने कुछ मित्रों के साथ, एक पार्क में घूमने जाने का अवसर मिला तो मेरी नजर पार्क के बीच में एक स्थान पर ठहर गई, जहां आधुनिक वेशभूषा में एक युवक व एक युवती अत्यंत निकटता से बैठे थे तथा उनके दोनों ओर कैमरे लेकर फोटोग्राफर उनकी फोटो शूट कर रहे थे। मन में कौतुहल जागा कि शायद किसी फिल्म की शूटिंग हो रही है। हम भी नजदीक शूटिंग देखने के इरादे से पंहुच गए। हमें इस तरह देखते हुए फोटोग्राफर ने बताया कि यह शूटिंग नहीं है बल्कि ये दोनों युवक-युवती एक दूसरे के मंगेतर हैजिसकी अगले महीने में शादी है। हम लोग इन दोनों की शादी की पहले की 'प्रोवेटिंग विडियो बना रहेहै। उन्होंने बताया कि आजकल शादी से पहले दुल्हा-दुल्हन को एक दूसरे के नजदीक लाते हुए उनके कुछ अंतरंग चित्रों को शूट अथवा विडियो बनाई जाती है जिसे शादी के दिन आए हुए मेहमानों को पर्दे पर दिखाया जाता है। इसका उद्देश्य व लाभ के बारे में पूछने पर वह फोटोग्राफर हमें संतुष्ट नहीं कर पाया। तब तक इस विषय में अपने सूत्रों से अनेक जानकारियां हमने जुटा ली जिससे काफी चौकाने वाली बातें प्रकाश में आई। कुछ फोटोग्राफरों से बात की तो उन्होंने बताया कि यह तो प्री वेडिंग आजकल बनवाना आम बात हो गई है। पहले कभी कुछ बिगडैल व असामाजिक व्यक्तियों ने इसकी शुरुआत की थी लेकिन इस प्री-वेडिग विडियो की प्रतिस्पर्धा में समाज के दूसरे लोग भी कूद गए हैं। बताया गया है अब तो 50 फीसदी शादियों में प्री  वेडिंग विडियो का फैशन शुरू हो गया है। अब तो इसके लिए सोनीपत, फरीदाबाद, गुडगांव, नोएडा, दिसे में कई जगह ऐसे फार्म हाऊस हैं जो केवल अपने यहां प्री-वेडिंग की शूटिंग कराने के लिए किराए पर जगह देते हैं। केवल फार्म हास 10000 से शुरू होकर 50 हजार तक होता हैइसके अलावा फोटोग्राफर भी प्री-वेडिंग विडियों शूट करने का एक दिन का खर्चा 30 हजार से तो शुरू करते हैं। बाद में सामने वाले की जेब देकर यह रकम 1 लाश तक पहुंच जाती है। मेरे दिल में यह सवाल आया कि इस प्री-वेडिंग नामक इस सामाजिक कुरीती की जरूरत क्या थी। क्या पहले से ही हमारे समाज में क्या कम कुरीतियां हैं जिन्हें तो हम अथकप्रयास करके भी दूर नहीं कर पाएं हैं और दूसरी बुराइयों को बढ़ा रहे हैं।  राय है कि समाज में हमें इस तरह कीनईतियों से परहेजकरना चाहिए म न कि उन्हें अपना चहिए।फोटोग्राफर, रियोग्राफर का त घधा है। उन्हें तो मालिक से दासेज्दाइवेट वाले पैसेवार्च कराकर अपनी जेब भरनी है। उन्हें इस बस से कई माया नहीं हैं उनके इस कार्य को समन किस और जा रहा है। वैसे भी आजकलशादी के महीनों पहले लड़के लड़कियों का खुले मैलजोल कप्रभा उन्य दाम्पत्यवनपर पड़ता है। यदि हम आकडेदेखें तो एक सीजन में गाजियाबाद में जितनी ज्ञशादियां होती हैं उनमें से लगभग आधी शादियों के के मुकदमें अदालत में प्रतिमहा रहे हैं। आज से यदि चार पांच दशक पछाए तो अको समाज में, दमकल दूरदराज की रिश्तेदारी में तलाक होने की जानकारी मिलती थी लेकिन आधुनिकता के इस युग में हम अपने संस्कार व संस्कृतिभूल रहें। हैं। वैसे भी आधुनिकता में हमारी आंखों पर पट्टी बादी है। यदि हमइने सामाजिक बुराईयों के प्रति अभी नहीं चैते तो वो दिन दूर नहीं जब पश्चिमी देशों की तरह हमारे ही भीशी होना और टूटन|तन की आम बात होएगी ।मेरा आग्रह है समा के वरिष्ठ लोगों से कि इस नई कुरीति को दूर करने का प्रयास करें।