मेरी राय

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महुर्त आज, फेरे कल शादी कैसे हो सफल ?


आजकल लड़का-लडकी जब एक दूसरे को पसन्द कर लेते हैं तब रिश्ता पक्का मान कर परिजन एक दूसरे को रिश्ता पक्का होने की आपस में बधाई देते हैं, मिठाईयां खिलाते हैं।  रिश्ता पक्का होने के तुरन्त बाद विद्वान सा पंडित खोज कर, शादी का महूर्त निकलवाया जाता है। साथ ही पंडित जी को विशेष हिदायत होती है कि महूर्त बहुत शुभ होना चाहियेताकि दोनों का दाम्पत्य जीवन सुखी रूप से चलता रहे। पंडित जी अपने सम्पूर्ण ज्ञान का सदुपयोग करते हुये दो-तीन अच्छे-अच्छे महूर्त निकाल कर यजमान को बता देते हैं। तब वर व कन्या पक्ष के लोग, पंडित जी द्वारा निकाले गये सभी महूर्तों को, अपनी सुविधाओं की कसौटी पर परखते हैं तथा उनमें से जिस तिथि पर दोनो पक्षों की सहमति हो जाती है, उसी दिन की शादी तय मानी जाती है। शादी के दिन घुड़चड़ी होने के बाद बैंकृट हाल के पास से चढ़त शादी के दिन घुड़चड़ी होने के बाद बैंकृट हाल के पास से चढ़त जनवासे तक पहुंचती है फिर आरती, खेत की रस्म, जयमाला, दुल्हादुल्हन का खाना खाने के बाद तब कहीं जाकर फेरे होते हैं। तब लड़की अपने घर से विदा होकर ससुराल में बहू बन कर पहुंच जाती है।  लेकिन यह प्राय आजकल ज्यादातर घरों में देखने में आ रहा है। कि शादी के दो-चार महीने के बाद ही लड़के-लड़की के बीच तनाव होना शुरू हो जाता है। धीरे-धीरे वह तनाव पति पत्नी के बाद सास ससुर, ननद आदि के पास भी पहुंच जाता है। घर के बड़े बुजुर्गों द्वारा कई बार, दोनों को समझाते भी है लेकिन पति पत्नी के बीच का तनाव कम होने की बजाय और बढ़ता चला जाता है। लड़के-लड़की के घर वालों की भी कई बार पंचायत होने के बाद भी जब कोई हल नहीं निकलता, तब उन पंडित जी से सम्पर्क कर पूछा जाता है। उनके द्वारा लड़का-लड़की का अच्छी तरह जन्मपत्री मिलाने एवं शुभ महूर्त में शादी  होने के बाद इनके बीच तनाव क्यों है।   कि पंडितजी की बात में मुझे कुछ जान दिखाईदी।आजकल, बारातें लड़की के दरवाजे पर रात को 10-11 बजे से पहले तो पहुंचती ही नहीं, बारात दरवाजे पर पहुंचने के बाद उनकी अनेक रस्म होनी होती हैं।जैसे लड़के की द्वार पर आरती, खेत लिया जाना, जयमाला, फोटो सेशन फिर लड़का-लड़की व अन्य प्रमुख लोगों का सहभोग होता है। इस सब के बीच हसी ठिठोली भी चलती रहती है इस तरह कुल मिलाकर रात्री के लगभग दो-तीन जरूर बज जाते हैं। तब आखिर में सुविधा अनुसार फेरे होते हैं वह भी बगैर महूर्त के। क्योंकि रात्री 12:00 बजते ही तारीख व महूर्त भी बदल जाते हैं। क्योंकि अगला दिन प्रारम्भ हो जाता है। एक बात और भी है फेरो तक की रस्मों तक पहुंचते-पहुंचते दोनों ही पक्ष के लोग इतना थकन में चूर हो जाते है कि वे पंडित जी पर जल्दी-जल्दी फेरे पूर्ण कराने पर जोर देते हैं। दोनों पक्षों द्वारा पंडितजी को यह भी दलील दी जाती है कि गर्मी में लड़की भारी   लहंगा पहन कर बैठी है इसकी हालत ज्यादा देर बैठने की नहीं है। अत: फेरे भारी लहंगा पहन कर बैठी जल्दी जल्दी ही निपटा लो।सवाल यह है कि जब फेरे महूर्त पर और विवाह (फेरे) विधि विधान से नहीं होंगे तो दाम्पत्य जीवन के सुखी होने की कल्पना करना व्यर्थ है। क्योंकि इसमें नक्षत्रों का बड़ा भाग रहता है।  मेरा सुझाव है कि शादी में फेरो का भी महूर्त अवश्य निकलवाना चाहिये तथा हमारे शास्त्रों में गोधूलि के फेरो का भी प्रावधान है। जिसके अनुसार बारात आते ही शाम ढलते ही समय पर सूर्यास्त से पहले फेरे करा दिये जाते हैं। इसके बाद जो भी अतिथि आते जाये वह दुल्हा-दुल्हन को आशीर्वाद देकर, उनके साथ फोटो खिंचवा लें। साथ ही एक दूसरा सुझाव यह भी है कि हमें खर्चीली व भड़कीली शादियों से दूरी बनानी चाहिये। ज्यादा व्यंजन परोसने वालों को हतोत्साहित करना होगा।


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