राज्यसभाः एक स्थाई सदन जो कभी अंग नहीं होता
संविधान के अनुच्छेद 80 में राज्य सभा के सदस्यों की अधिकतम संख्या 250 निर्धारित की गई है वर्तमान में 245 हैं, जिनमें से राज्यों के और संघ राज्य क्षेत्रों के प्रतिनिधि होते हैंराज्य सभा के सदस्यों की वर्तमान संख्या 245 है, जिनमें से 233 सदस्य 27 राज्यों और संघ राज्यक्षेत्र दिल्ली तथा पुडुचेरी के प्रतिनिधि हैं और 12 राष्ट्रपति द्वारा नॉमिनेटिड हैं।
गाजियाबाद। राज्य सभा भारतीय लोकतंत्र की ऊपरी प्रतिनिधि सभा है। लोकसभा निचली प्रतिनिधि सभा है। राज्यसभा में 245 सदस्य होते हैं। जिनमे 12 सदस्य भारत के राष्ट्रपति के द्वारा नामांकित होते हैं। इन्हें 'नामित सदस्य' कहा जाता है। अन्य सदस्यों का चुनाव होता है। राज्यसभा में सदस्य 6 साल के लिए चुने जाते हैं, जिनमे एक-तिहाई सदस्य हर 2 साल में सेवा-निवृत होते हैं। किसी भी लोकतांत्रिक देश में उच्च सदन को राष्ट्र हितों की रक्षा करने के लिए बनाया जाता है। राज्यसभा का गठन एक पुनरीक्षण सदन के रूप में हुआ है जो लोकसभा द्वारा पास किये गये प्रस्तावों की पुनरीक्षा करे। संविधान के अनुच्छेद 80 में राज्य सभा के सदस्यों की अधिकतम संख्या 250 निर्धारित की गई है वर्तमान में 245 हैं, जिनमें से राज्यों के और संघ राज्य क्षेत्रों के प्रतिनिधि होते हैं। राज्य सभा के सदस्यों की वर्तमान संख्या 245 है, जिनमें से 233 सदस्य 27 राज्यों और संघ राज्यक्षेत्र दिल्ली तथा पुडुचेरी के प्रतिनिधि हैं और 12 राष्ट्रपति द्वारा नॉमिनेटिड हैं। राष्ट्रपति द्वारा नामित किए जाने वाले सदस्य ऐसे व्यक्ति होते हैं जिन्हें साहित्य, विज्ञान, कला और समाज सेवा जैसे विषयों के संबंध में विशेष ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव है। संविधान के अनुच्छेद 75 (3) के अधीन, मंत्री परिषद् सामूहिक रूप से लोक सभा के प्रति जिम्मेदार होती है जिसका मतलब यह है कि राज्य सभा सरकार को बना या गिरा नहीं सकती है। लेकिन यह सरकार पर नियंत्रण रख सकती है और यह कार्य विशेष रूप से उस समय बहुत महत्त्वपूर्ण हो जाता है जब सरकार को राज्य सभा में बहुमत प्राप्त नहीं होता है। मंत्री संसद की किसी भी सभा से हो सकते हैं। इस संबंध राज्य में संविधान सभाओं के बीच कार्यकाल सभा से हो सकते हैं। इस संबंध में संविधान सभाओं के बीच कोई भेद नहीं करता है। प्रत्येक मंत्री को किसी भी सभा में बोलने और उसकी कार्यवाही में भाग लेने का अधिकार होता है, लेकिन वह उसी सभा में मत देने का हकदार होता है जिसका वह सदस्य होता है। राज्यसभा एक स्थायी सदन है और यह भंग नहीं होता। इसलिए प्रत्येक दो वर्ष बाद राज्य सभा के एक-तिहाई सदस्य सेवा-निवृत्त हो जाते हैं। राज्य सभा के सदस्य काकार्यकाल छः वर्ष होता है।
इसलिये है राज्य सभा जरूरी
स्वतंत्र भारत में द्वितीय सदन की उपयोगिता के संबंध में विस्तृत बहस हुई और अन्ततः स्वतंत्र भारत के लिए एक द्विसदनी विधानमंडल बनाने का निर्णय लिया गया। इसके पीछे मुख्य तर्क यह दिया गया कि भारत विविधताओं से युक्त एक संघीय शासन प्रणाली वाला देश है, इसलिए जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों की लोकसभा देश के सामने आने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिए पर्याप्त नहीं है। अंततः संविधान सभा इस निष्कर्ष पर पहुची कि भारत में द्विसदनीय शासन प्रणाली का प्राविधान होना चाहिए जिसमें लोक सभा भारत की जनता का प्रतिनिधित्व करेगी तथा राज्य सभा द्वारा भारतीय संघ में शामिल राज्यों का प्रतिनिधित्व किया जायेगा।
राज्यसभा के पास तीन विशेष शक्तियां होती है।
1.अनु.249 के अंतर्गत राज्य सूची के विषय पर 1 वर्ष का बिल बनाने का हक
2.अनु. 312 के अंतर्गत नवीन अखिल भारतीय सेवा का गठन 2/3 बहुमत । से करना
3. अनु. 67 ब उपराष्ट्रपति को हटाने वाला प्रस्ताव राज्यसभा में ही लाया जा सकेगा त किया जा सकता है।]
किस राज्य से कितने सदस्य
राज्यसभा में किस राज्य से कितने चाहिए इसे कैसे निकाला जाता है यह सांसद होंगे यह उस राज्य की तय करने के लिए कुल विधायकों की जनसंख्या के हिसाब से तय किया जाता संख्या को जितने सदस्य चुने जाने हैं। है। राज्यसभा के सदस्य का चुनाव उसमें एक जोड़कर विभाजित किया राज्य विधानसभा के चुने हुए विधायक जाता है। करते हैं। प्रत्येक राज्य के प्रतिनिधियों यदि 10 राज्यसभा सदस्यों का की संख्या ज्यादातर उसकी जनसंख्या चयन होना है। इसमें 1 जोड़ने से यह पर निर्भर करती है। इस प्रकार, उत्तर संख्या 11 होती है। अब कुल सदस्य प्रदेश के राज्यसभा में 31 सदस्य हैं। 403 हैं तो उसे 11 से विभाजित करने जबकि अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, पर 36.66 आता है। इसमें फिर 1 नगालैंड, मेघालय, गोवा, मिजोरम, जोड़ने पर यह संख्या 37.66 हो जाती सिक्किम, त्रिपुरा आदि छोटे राज्यों के है। यानी उत्तर प्रदेश से राज्यसभा केवल एक एक सदस्य हैं। लेकिन सांसद बनने के लिए उम्मीदवार को 37 इसकी चुनावी प्रक्रिया बाकी सभी चुनावों प्राथमिक वोटों की जरूरत होगी। से अलग होती है। एक उम्मीदवार को इसके अलावा वोट देने वाले प्रत्येक चुने जाने के लिए न्यूनतम मान्य वोट विधायक को यह भी बताना होता है कि चाहिए होते हैं। वोटों की गिनती सीटों उसकी पहली पसंद और दूसरी पसंद की संख्या पर निर्भर करता है। का उम्मीदवार कौन है। इससे वोट इसे समझने के लिए उत्तर प्रदेश प्राथमिकता के आधार पर दिए जाते हैं। का उदाहरण लेते हैं। यहां विधायकों की यदि उम्मीदवार को पहली प्राथमिकता कुल संख्या 403 है। अब प्रत्येक का वोट मिल जाता है तो वो वह जीत सदस्य को राज्यसभा पहुंचने के लिए जाता है नहीं तो इसके लिए चुनाव कितने विधायकों का समर्थन प्राप्त होना होता है।