वन नेशन-वन इलेवन

वन नेशन-वन इलेवन 


साँदिल्लीकसभा में हर तमाम बारनई दिल्ली। देश में हर पांच साल में लोकसभा व तमाम राज्यों की विधान सभाओं में एक साथ चुनाव कराये जाने मुद्दा का आजकल छाया हुआ है। हालांकि इस मुद्दे पर संसद में कभी चर्चा नहीं हुई है और न ही किसी तरह के संवैधानिक और कानूनी बदलाव की अब तक कोई पहल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक नेशन एक इलेक्शन पर राष्ट्रीय सहमति बनाने की बात कहने के बाद से मुद्दा फिर से गर्माने लगा । आजादी के बाद देश में लोकसभा व विधान सभाओं के चुनाव एक साथ होते थे। 1952 से विधान सभा के चुनाव लोकसभा चुनाव के साथ ही होते थे। 1951-52, 1957, 1962 व 1967 में विधान सभा के चुनाव लोकसभा चुनाव के साथ ही हुये थे। लेकिन कुछ राज्यों में राजनैतिक अस्थिरता के चलते कुछ राज्यों में सरकारों के गिर जाने से मामला गड़बड़ा  गया और फिर 1977 के बाद जब केन्द्र में जनता दल की सरकार आई और फिर आपस के टकराव से सरकार चल नहीं  पाई और मध्यवादी चुनाव कराना पड़ा। तब से लेकर अब तक कभी भी लोकसभा व विधान सभा के चुनाव एक साथ  नहीं हो पाये। भारत में चुनाव बड़े पैमाने पर पैसे का खेल बन चुका है। चुनाव आयोग की यह सबसे बड़ी चिंता भी है। इसे रोकने में  तमाम संस्थाएं विफल रही हैं, जिनमें चुनाव आयोग भी शामिल हैचुनाव के समय सबसे ज्यादा पैसा मीडिया प्रबंधन में लग रहा हैयह बात राजनीतिक दलों के चुनाव खर्च के 2014 के आंकड़ों से भी साबित हुई है। जनमत को प्रभावित करने के लिए मीडिया में पेड न्यूज छापे  और दिखाए जाते हैं। इसके अलावा, मतदाताओं की राय को प्रभावित करने में सक्षम लोगों तक पैसे पहुंचाए जाते हैं। मतदाताओं को रिश्वत देने का भी चलन आम हैशराब बांटी जाती है और गिफ्ट दिए जाते हैं। इस खर्च को कॉरपोरेट जगत से लिया जाता है और बदले में कॉरपोरेट  जगत राजनीतिक दलों से फायदा लेता है। बार-बार और लगातार चुनाव होने से यह भ्रष्टाचार पांच साल में एक बार होने वाली घटना की जगह, लगातार जारी  चलन बन जाता है। एक बार में लोकसभा और तमाम विधानसभाओं के चुनाव करा लेने से भ्रष्टाचार सीमित समय तक ही चलेगा।


'एक देश-एक चुनाव' के फायदे


 सरकार का आर्थिक बोझ कम होगा। ।


कालेधन के प्रयोग व भ्रष्टाचार पर अंकुश।


 राज्यों को बार-बार के आचार संहिता से मुक्ति।


 सरकारी कर्मचारियों को नहीं होगी परेशानी।


धर्म व जाति की बजाय वास्तविक मुद्दों पर होंगे चुनाव • केन्द्रीय व राज्य सरकारों को पांच साल कार्य करने का मौका मिलेगा


एक साथ चुनाव के खिलाफ दिए जाने वाले तर्क


 ज्यादातर लोग वोट देते समय एक ही पार्टी को वोट कर सकते हैं लिहाजा देश में एक ही पार्टी का शाशन हो जाएगा।


एक साथ चुनाव तयशुदा वक़्त की लोकसभा और विधान सभाओं की सिफारिश करता हैजिसके लिए संविधान में बदलाव जरूटी होगा।


इससे राष्ट्रीय और क्षेत्रीय पार्टियों के बीच मतभेद बढ़ेंगे ।


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