बताओ भाई,इतनी दीवानगी आखिर क्यों है शस्त्र लाईसेंस पाने के लिये?
गाजियाबाद। यदि आप किसी भी -सत्ताधारी पार्टी के किसी भी जनप्रतिनिधी के आवास अथवा उनके शिविर कार्यालय पर जाये तो उस जगह सबसे ज्यादा भीड़, शस्त्र लाइसेंस के आवेदकों की देखने को मिलेगी। जो सांसद, विधायक, महापौर के दरबार में अपने शस्त्र लाइसेंस बनवाने की सिफारिश करवाने की आस लिये खड़े मिलेंगे। ये आवेदक भी सीचे अपने जनप्रतिनिधि के पास ना आकर, बल्कि इन तक पहुंचने का माध्यम तलाश कर उसके द्वारा पहुंचाये गये हैं।सवाल यह है कि शस्त्र लाइसेंस को पाने के लिये लोगों में इतनी दीवानगी क्यों है। लाइसेंस बनवाकर शास्त्र सरीदने के पक्षात आखिर उनकी उपयोगिता क्या होगी। इन सवालों का जवाब जरूर वो लोग जानना चाहेंगे जिनके पास न तो लाइसेंस है न ही शस्त्र है। आज शस्त्र का लाइसेंस बनवाने के लिये लोग न केवल बड़ी-बड़ी सिफारिश लगवाते हैं तथा इसके बाद कुछ लोग दलालों के जाल में फंस कर, लाइसेंस बनवाने को 60 हजार से एक लाख रूपये तक खर्च कर देते हैं। शस्त्र बनवाने की दलाली में ज्यादातर वे लोग प्रमुख भूमिका निभाते हैं जिनका जिला मुख्यालय में अच्छा आना जाना होता है। किसी तरह ले देकर लाइसेंस बनवा लेने के बाद, आवेदक तच दो-ड्राई लास रूपये सर्च करके हथियार खरीद लेता है। लेकिन दो-तीन लाख रूपये खर्चने व भागदौड़ करने के बाद जब हथियार अंटी में आ जाता है तब उसका कब और कहां उपयोग किया जाये। शस्त्र धारक काफी देर तक सोचता रहता है कि इस हथियार का अब वह क्या करे। बहुत सोचने समझने के बाद ज्यादातर ऐसे लोग हथियार को अपनी तिजोरी अथवा बैंक के लॉकर में ले जाकर चन्द कर देते हैं। आन गाजियाबाद में 16 हजार के पास लाइसेंसी हथियार हैं लेकिन 1976 में जिला बनने के बाद आज तक शायद ही कोई ऐसा उदाहरण जनपद में मिल पाये जिसमें लाइसेंसी धारक ने अपने हथियार से कही भी बदमाशों का मुकाबला किया हो। अथवा अपने जिन्होंने लाइसेंस हथियार से कभी-भी अपनी अथवा अपने पड़ोसी, किसी दोस्त, रिश्तेदार की जान माल की दूसरे रक्षा की हो या कभी किसी अपराधी को वारदात करते समय गोली मारी हो। गाजियाबाद में आये दिन लूट दुरूपयोग डकैती, हत्याओं की वारदाते होती हैरहती हैं लेकिन किसी भी शस्त्र होने धारक ने भी इन वारदातों को देखा रोकने हेतू अपने हथियारों से बदमाशों को डराया हो। अधिकत्तर लोग टशन के लिये लाइसेंस बनवाकर, हथियार खरीद लेते हैं निकालकर लेकिन उन्हें केवल दशहरा, दिपावली पर पूजन करने के लिये ही बाहर निकालते हैं। बहुत भाग्यवान है वो लोग जिन्होंने अपना शस्त्र लाइसेंस नहीं बनवाया है। इसलिये उनके घरों में किसी अपने ने आत्महत्या अथवा दूसरे की हत्या न की अन्यथा गाजियाबाद में आज भी सैकड़ों घर लाइसेंसी हथियार के दुरूपयोग से बर्बाद हो चुके हैं। सबसे ज्यादा दुरूपयोग तो हर्ष फायरिंग में होता है। इसके अलावा घर में हथियार होने का दूसरा नुकसान यह भी देखा गया है जब भी पति, पत्नी, भाई, बेटे-पित्ता, दोस्त-दोस्त के बीच बड़ा झगड़ा हुआ नहीं कि एक ने जोश में हथियार निकालकर सामने वाले पर गोली चलादी और हो गई बर्बादी की शुरूआत। यदि घर में हथियार न होता तो क्या वारदात हो सकती थी। लाइसेंसी हथियार खरीदने से क्या लाभ है ये तो खरीदने वाला बेहतर जानता होगा लेकिन हथियार रखने के क्या नुकसान है। ये हमें जरूर जानकारी है वो निम्न प्रकार है बहुत कम लोग परमार्थ सन्देश के इस तथ्यों से असहमत होंगे। 1. लाइसेंस हथियार धारक को अपने से ज्यादा, अपने हथियार की सुरक्षा की चिन्ता रहती है। 2. चुनाच, दंगे अथवा थोड़ा भी सामुदायिक तनाव होने पर, सबसे पहले प्रशासन आपके हथियार थाने में जमा करा लेता है। जबकि उस नाजुक समय में शायद आपको लिये? हथियार की ज्यादा जरूरत होगी। 3. यदि बदमाश को यह मालूम है कि किस व्यक्ति के पास हथियार है तो उस बदमाश का पहला हमला उसी लाइसेंस शस्त्र धारक पर किया जाता है निससे शस्त्र धारक को कभीकभी खत्तरा भी हो जाता है। जिस व्यक्ति के अंटी में हथियार लगा होता है अथवा वह रिवालवर का प्रदर्शन करता है तो सभ्य समाज में उसे सम्मान की दृष्टि से नहीं देखा जाता। 5. हर्ष फायरिंग में अब तक सैकड़ों घर बर्बाद हो चुके हैं। 6. लाइसेंसी हथियार से आन तक कोई भी व्यक्ति अपनी व दूसरों की जान की रक्षा नहीं कर पाया। हमारा मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि लाइसेंस प्राप्त कर हथियार लेना हर सूरत में व्यर्थ है कहीं-कहीं इसकी उपयोगिता भी हो सकती है। लेकिन हथियार पाने हेतू ऐसी दीवानगी व्यर्थ लगती है। सवाल यही है कि जो वस्तु, बुरे वक्त में आपके काम नहीं आ सकती है। चल्कि इसके विपरित आपके हंसते खेलते परिवार में चुरा वक्त जरूर ला सकती है। तो क्या ऐसी वस्तु को पाने के लिये दीवानगी उचित है।