मेरी राय

पहले, अपनी सब्सिडी खत्म करो तो जाने


मोदी जी ने इस वर्ष 15 अगस्त को लाल किले से देशवासियों को सम्बोधित करते समय संकल्प दिलाया था कि प्रत्येक देशवासी दुनिया को बाद में घूमें, पहले अपने देश के अन्दर जो अनेक रमणीक व धार्मिक पर्यटन स्थल हैं उनका भ्रमण करें। उन्होंने देशवासियों को आह्वान किया था कि 2022 तक अपने देश के अन्दर कम से कम 15 स्थानों पर अवश्य घूमने जायें। इससे देश में जगह-जगह पर्यटन का विकास होगातथा आपकी देखा देखी ऐसे स्थानों पर विदेशी भी आना जाना शुरू हो जायेंगे। - प्रधानमंत्री जी के इस संकल्प को देश के अन्दर, सबसे पहले हमने गंभीरता से लिया और 20 अगस्त को ही बनारस घूमने का कार्यक्रम अपने चौदह मित्रों के साथ बनाया तथा प्रधानमंत्री जी के आह्वान करने के तुरंत बाद "वन्दे भारत एक्सप्रेस ट्रेन" से बनारस घूमने के लिये रेलवे विभाग में सीट रिजर्व करवा लीं। हम 14 मित्रों में 10 की उम्र 60 वर्ष से ज्यादा थी तथा बाकि चार साथी युवा होने के समकक्ष थे। इसलिये रेलवे नियमानुसार हमें वापसी की टिकटों पर सीनियर सिटीजन का लाभ मिलायह सुविधा वन्दे भारत ट्रेन के सीनियर सिटीजन यात्रियों को उपलब्ध नहीं थी। ___ चूंकि बनारस से गाजियाबाद के लिये हमारी वापसी मण्डावाड़ी एक्सप्रेस से थी। इसलिये मेरे सभी सीनियर सिटीजन मित्रों को समाज में वरिष्ठ होने के सम्मान रेलवे द्वारा 43 स्वरूप लगभग 43 प्रतिशत किराया कम लिया गया। चूंकि हमारे दस मित्रों की उम्र 60 वर्ष पूर्ण हो गई थी। इसलिये रेलवे द्वारा सभी वरिष्ठ नागरिकों से को 43 प्रतिशत कम किराया लिया गया। इस छूट को पाकर हमें बहुत सम्मान सा महसूस हुआ। लेकिन इस सम्मान की खुशी, उस समय काफूर हो गयी जब मैंने रिजर्वेशन टिकट की कापी को ऊपर से नीचे तक ध्यान पूर्वक पढ़ा। मैं यह देखकर आवाक रह गया कि रेलवे विभाग द्वारा यह सीनियर सिटीजनों को सम्मान दिया गया। अथवा उन्हें जलील करने का एक अनूठा तरीका निकाला है। रेलवे रिजर्वेशन टिकट पर सबसे नीचे मोटे-मोटे अक्षरों में छपा था कि "क्या आप जानते हैं कि आपके किराये का 43 प्रतिशत देश के आम नागरिक वहन करते हैं।" मुझे यह पढ़कर बहुत बेइज्जती एवं आत्मग्लानी महसूस हुई कि यात्रा हम करें और हमारा खर्च देश के दूसरे आम नागरिकों पर पड़े यह तो उन दूसरों असंगठित यात्रियों के साथ घन घोर अन्याय है। मेरा कहना है कि रेलवे विभाग द्वारा वरिष्ठ नागरिकों को एक तो छूट दी क्यों गई, दूसरे यदि किन्ही परिस्थितियों में सीनियर सिटीजन को छूट दी गई तो उसका समायोजन (पूर्ति) सरकारी बजट से क्यों नहीं किया गया। इस 43 प्रतिशत घाटे की वसूली, देश के अन्य नागरिकों से वसूलने का अधिकार किसने दे दिया। वो आम नागरिक तो केवल अपने हिस्से के ही तो रेलवे टिकट का पैसा देंगे या दूसरे यात्रियों को दी गई सुविधा से होने वाले घाटे को भी उनसे ही वसूला जायेगा।


 राय है कि ये रेलवे टिकटों पर इस तरह लिखना अनुचित है, सरकार यदि किसी वर्ग को खुश करने के लिये जो भी सुविधा देती है उस सुविधा को देने की एवज में सरकार को जो भी आर्थिक हानि होती है उसकी पूर्ति उन्हें सरकारी बजट से करनी चाहिये। दूसरा मेरा मत यह भी है कि सरकार को कोई हक नहीं है कि वह सरे राह दिढोरा पीट कर सीनियर सिटीजन की यह बेइज्जती करें कि तुम्हें जो बख्शीशदीगईहै उसका जुर्मानादूसरे यात्रियों से वसूला जा रहा है। दूसरा, इस सन्दर्भ में मेरा यह भी कहना है कि देश के पूर्व जनप्रतिनिधि जिनमें हजारों विधायक, सांसद, केन्द्रीय मंत्री व मुख्यमंत्री है वह रिटायर होने के बाद जो बंगले, गाड़ी, नौकरों के साथ-साथ रेलवे व हवाईमार्गसे पूरे जीवन निःशुल्कयात्रा करते हैं क्या उसकी पूर्ति देश की जनता से करते है, यदि देश की जनता से वसूलते हैं तो उसे भी सीनियर सिटीजनों की तरह बड़े-बड़े अक्षरों में प्रचारित क्यों नहीं करते। साथ ही पार्लियामेंट की कैन्टीन में सबसे सस्ता खाना, देश के उन जनप्रतिनिधियों को खिलायाजाता है, जिनकी मासिक आय, सभी भत्ते मिलाकरएक लाख से अधिक है। उन्हें यह सब्सिडी लेने का क्या अधिकार है। पूरे देश में सड़कों पर भी जहां चाय कम से कम दस रूपये में मिलती है, वही चाय वहां लोकसभा की कैन्टीन में मात्र एक रूपये की मिलती है। वह इनजनप्रतिनिधियों को एक रूपये में चाय, छह रूपये में डोसा तथा 12 रूपये में उच्चक्वालिटी काभरपेट भोजन मिलता है। जिसकाबाजार में मूल्य कम से कम 150-200 रूपये है। इस घाटे की भी तो सरकार पूर्ति करती होगी। यदि सरकार इतनी ही सिद्धांत वादी है तो क्यों नहीं इन जनप्रतिनिधियों को फ्री यात्रा कूपनों पर एवं पार्लियामेंट कैन्टीन की दिवारों पर भी बड़े-बड़े अक्षरों में यह लिखवा देना चाहिये कि जो हम मुफ्त यात्रा कर रहे हैं अथवा इतना सस्ता खाना खा रहे हैं, इन सब के बिल की वसूली जनता द्वारा वहन की जा रही है। तब होगा "एक देश एक सिद्धान्त'।