मेरी राय

मेरी राय


बढ़ते बलात्कारों के लिये जिम्मेदार कौन!


यह एक विवादास्पद प्रश्न है इस पर लेखनी चलाने से आलोचना होगी। लेकिन समाज के सामने अपनी राय रखना मैं अपना कर्तव्य मानता हूं। मुझे नहीं मालूम आपको उचित लगेगी या अनुचित। लेकिन मेरे विचार में आज गिरते हुये सामाजिक मूल्यों की पराकाष्ठा के काल में हम लोग जी रहे हैं। ___ यदि बलात्कार जैसे राष्ट्रपति पदक से सम्मानित जघन्य अपराध पर विचार करें तो यह स्पष्ट हो जायेगा कि पांच दशक पहले के मुकाबले एक तो यह अपराध इस काल खण्ड में बढ़ गया है। दूसरे जिस उम्र के बाल अपराधी इस जुर्म में पकड़े जा रहे हैं पांच दशक पहले उस उम्र के बच्चों को दुनिया जहां का कुछ पता नहीं होता था। आज सबसे ज्यादा बलात्कार छोटी उम्र में हो रहे हैं। इन सबके लिये कौन जिम्मेदार है। कभी ये सोचा है किसी ने। क्या इस अपराध के लिये वह बच्चा अकेला जिम्मेदार है। आज समाज में ऐसा वातावरण उस बच्चे को किसने दिया। क्या यह सोचने का विषय नहीं है। कोई माता-पिता सच्चे मन से यह कह सकते है कि वह कितना समय अपने बच्चे के लिये निकाल रहे हैं। किस को फुरसत है कि पहले की तरह बच्चों के साथ समय व्यतीत करे। हम बच्चों की जिद पर एक अच्छे पिता होने का कर्तव्य पूरा करते हुये उसे एंड्रायड मोबाइल दिला देते हैं। इसी से ही माता पिता संतुष्ट हो जाते हैं कि हमने अपने बच्चे को उसकी खुशी दे दी। माता-पिता तो आज अक्सर दोनों नौकरी करते हैं। यदि मां नौकरी भी नहीं करती होगी तो भी शायद ही किसी मां को बच्चे के साथ बात करने या खेलने का समय होगा। नौकरी ना करने वाली मां को किसी पार्टी अथवा घरेलू कार्यो में उलझने के कारण बच्चे की तरफ ध्यान देने का कम ही समय मिलता होगा। की तरफ ध्यान देने का कम ही समय मिलता होगा। __दूसरे आज परिवार बहुत ज्यादा सिकुड़ गये हैं शायद ही कोई परिवार होगा जिसका दादा-दादी के साथ संयुक्त परिवार होगा। जिससे यदि माता-पिता अपने कार्य पर चले भी जाये तो बच्चे दादा-दादी के साथ बैठ कर कुछ सीख सकेंगे। आज माता-पिता दोनों के व्यस्त रहने के कारण बच्चा स्कूल से आकर अपना मोबाइल या लेपटॉप खोल लेता है। फिर उसके लिये दुनिया कितनी छोटी हो जाती है। अकेले में बच्चा अश्लील जगत में घुस जाता है जहां छोटी सी उम्र में सब कुछ उसके सामने होता है। इसके बाद जो कमी रहती है वह टेलिविजन पूरी करता है। जिस पर कन्डोम, कच्छी, ब्रा, सेनेट्री पैड के विज्ञापन क्या कुछ नहीं दिखाये जा रहे हैं। परिवार के साथ टी.वी. देख रहा बच्चा जब ब्रेक में इस तरह के अर्धनग्न महिलाओं के विज्ञापन आते हैं तो उस बाल उम्र के दिमाग को यौन के प्रति, इतनी छोटी उम्र में कितना उकसाते हैं। यह किसी ने नहीं सोचा। ना सरकार इस जहर को घर-घर पहुंचाने से बचाना चाहती है। ना ही समाज व विपक्षी दलों में बैठे लोग इस पर लोकसभा में कोई सवाल उठाते हैं। टी.वी. सीरियल जिन्हें पारिवारिक व सामाजिक कह कर घरों में परोसा जा रहा है वह बड़ों व बच्चों में यौन अपराध सीचने का काम कर रहे हैं। री राय है कि आज समाज में बच्चों द्वारा यौन क्रियाओं में लिप्त होने के कारण, उन्हें अपराधी ठहरा कर हम अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेते हैं। सही मायनों में हम उन बच्चों से ज्यादा जिम्मेदार हैं हमने बच्चों को ऐसा वातावरण दिया। जरा सोचिये जो आज 60 से ज्यादा उम्र पार कर चुके हैं क्या कभी वह जवान नहीं हुये थे। क्या कभी इस उम्र के उस समय के नौजवान ने कभी बलात्कार करना तो दूर, इस और सोचने की भी हिम्मत की थी। उस समय माता-पिता दादा-दादी के अलावा मौहल्ले पड़ोस के बुजुर्गों का भी बच्चों पर इतना खौफ होता था कि वह जरा सा भी यदि उल्टा चलते दिखाई देते थे तो घर वाले बाद में पहले सड़क पर बैठे बुजुर्ग ही चम्पी कर देते थे। आज बाहर मौहल्ले में तो छोड़ों घरों में भी बुजुर्गनही हैं। यदि हैं भी, तो उन्हें बच्चों को डांटने का अधिकार नहीं है। वे तो बेचारे किसी तरह अपना समय काट रहे हैं। मेरे विचार में बढ़ते हुये अपराधों के लिय बच्चों के हाथ में मोबाइल व अधुनिकता के नाम पर लड़कियों की छोटी होती जा रही ड्रेस भी जिम्मेदार है।