नौकरशाह कर रहे सरकार की किरकिरी

नौकरशाह कर रहे सरकार की किरकिरी


जनसुनवाई पोर्टल पर शिकायतों का हो रहा फर्जी निस्तारण 


गाजियाबाद। विकास कार्यों से लेकर बुनियादी समस्याओं के समयबद्ध और समुचित समाधान के लिए बनाए गए जनसुनवाई पोर्टल अफसरों की आंकड़ेबाजी के कारण मजाक बन गए हैं। सरकार की मंशा थी कि पोर्टल के जरिए लोगों की भागदौड़ बचेगी और उन्हें अपने घर और क्षेत्र में ही अपनी शिकायतों का निदान मिल जाएगा पर कमोवेश हर विभाग जनसरोकार से जुड़ी शिकायतों को लेकर उदासीन है। सरकारी जमीनों पर अतिक्रमण का मामला हो या कोई अन्य समस्या अनियमितताओं की बात हो या फिर टूटी सड़कों और गंदगी की शिकायत्त, अफसर और उनके अधीनस्थ ज्यादातर के निस्तारित होने का दावा कर वाहवाही लूट रहे हैं। दरअसल, मातहत दफ्तर में बैठ कर ही समस्याओं का निस्तारण दिखा कर फाइल क्लोज कर देते हैं और आला अफसर स्थलीय सल्यापन में रुचि नहीं दिखाते हैं। नतीजतन, शिकायतकर्ता और पीड़ित आदमी निस्तारण के फजीवाड़े की फाइल लेकर फिर से  दफ्तरों के चक्कर लगाने लगता है। गांधी नगर निवासी उमेश भारद्वाज ने नगरायुक्त नगर निगम के नाम जनसुनवाई पोर्टल पर करहेड़ा में सरकारी जमीन पर अवैध कब्ने की शिकायत 22 अगस्त 2019 को की थी। उनसे बिना किसी पूछताछ के शिकायत्त का फर्जी निस्तारण कर दिया। जमीन पर अवैध कन्ना अब भी बरकरार है। जबकि वर्ष 2018 में जांच के बाद अवैध कब्ने को हटाने के आदेश भी पारित हो चुके हैं और तहसीलदार नगर निगम ने अवैध कब्जा हटाने के लिये जिलाधिकारी को पत्र लिख कर 26  सितम्बर 2018 को पर्याप्त पुलिस बल उपलब्ध कराने के लिये बकायदा पत्र भी लिखा था। लेकिन आज भी करहेड़ा मै सरकारी जमीन जहां कभी होलिका दहन होता था। एक स्कूल मालिक ने कब्जा कर रखा है। दूसरा मामला संजय नगर सैक्टर 23 का है। जहां मकान संख्या एफ-10 के सामने बरगद का पुराना पेड़ है। जिसका एक डाला मकान पर गिर सकता है। उसकी कटाई छटाई के लिये पोर्टल पर नगरायुक्त के नाम आवेदन किया था। करीब 25 दिन बाद नगर निगम के अवर अभियंता दिनेश चन्द शर्मा फोन आया और उन्होंने कहा कि आपके आवेदन पत्र को वन विभाग को प्रेषित कर दिया गया है, वहां से परमिशन मिलेगी। इसके सप्ताह बाद जब वन विभाग के दफ्तर जाकर मालूम किया तो वहां कोई आवेदन पत्र प्रेषित नहीं किया गया। हालत जस की तस है और जन सुनवाई पोर्टल पर निस्तारण की सूचना प्रसारित कर दी गई। कमोवेश सभी आवेदनकर्ताओं के साथ ऐसा ही हो रहा है। अधिकारियों ने जन सुनवाई पोर्टल को भी मजाक बनाकर रख दिया है।