'हॉर्न' नहीं, एक आफत है
'हॉर्न' नहीं, एक आफत है सड़कों परगाड़ियों के अनावश्यकहॉर्न बजानाबन गया है आदत
रेड लाइट स्टॉप वजाम के बावजूद नहीं रुकता हॉर्न का शोर
गाजियाबाद। एक तरफ पर्यावरण को साफ-सुथरा बनाने और पेड़पौधों का संरक्षण कर हरियाली का बढ़ावा देकर प्रदूषण से जंग लड़ी जा रही है तो दूसरी ओर वाहनों के हॉर्न न केवल मानव बल्कि जीवों के जीवन पर भी प्रभाव डाल रहा है। इसके लिए कोई और नहीं बल्कि हम और आप ही जिम्मेदार हैं। __सभी प्रकार के व्हीकलों में हॉर्न का प्रावधान जरूर होता है। यह हॉर्न का बटन व्हीकलों में इस लिए लगाए जाते हैं कि यदि गाड़ी के सामने अचानक कोई आदमी या जानवर आ जाए तो उसे हॉर्न बजाकर सावधान किया जा सके। मानव का जीवन बचाने तथा दुर्घटना कम करने के उद्देश्य से गाड़ियों में हॉर्न का पीछे प्रावधान किया जाता है। लेकिन आज सड़कों पर देखा जा रहा है कि ज्यादातर वाहन चालक अनावश्यक रूप से हॉर्न का प्रयोग करते रहते हैं। 99 प्रतिशत वाहन चालकों को तो हॉर्न के बटन का महत्व भी नहीं मालूम होगा। चौराहे पर जब सारा ट्रैफिक लाल बत्ती होने के कारण खड़ा होता है और सभी लोग ग्रीन लाइट होने की प्रतीक्षा करते हैं तब भी ऐसे में भी कुछ चालक अपनी गाड़ी में लगे हार्न को लगातार बजाते रहते हैं। वहीं जब दूर तक लम्बा जाम लगा रहता है तथा सैंकड़ों गाड़ियां एक के पीछे एक खड़ी होकर जाम खुलने का इंतजार करती हैं। ऐसी परिस्थितियों में भी बगैर सोचे समझे बहुत से वाहन चालक हॉर्न से हाथ ही ही नहीं हटाते हैं। आज सड़कों पर पहले से ही वायु प्रदूषण इतना ज्यादा है कि चार पहिया वाहनों को छोड़कर सभी दूसरे वाहन व पैदल यात्रियों को तो सड़कों पर ऐसे वायु प्रदूषण में चलना अत्यन्त गंभीर बीमारियों को न्यौता देना होता है। ऐसे वायु प्रदूषण में जो व्यक्ति ज्यादा समय सड़कों पर खुले में चलता है उसके गले से सुबह को काले रंग का बलगम निकलता है। यह काला बलगम बढ़ते वायु प्रदूषण की चपेट में आने का लक्षण है। वायु प्रदूषण तो गले की बीमारी तथा ध्वनि प्रदूषण लोगों को बहरा कर रहा है। सड़कों पर गाड़ियों के हॉर्न बजने से ध्वनि प्रदूषण भी इतना ज्यादा बढ़ गया है कि यदि हम आपसे कहें कि आप पुराने बस अड्डे चौराहे पर पुल के नीचे मात्र 15-20 मिनट को खड़े हो जाओ तो आपका जवाब ना ही निकलेगा। जी हां यहां वाहनों की रेलमपेल के बीच उनके लगातार बजने वाले हॉर्न के शोर के कारण न केवल आपके सिर में दर्द हो जायेगा बल्कि आपको चक्कर तक आने लगेंगे। ट्रैफिक पुलिस के उन जवानों के जज्बे को सलाम करना चाहिए जो घंटों तक ऐसी परिस्थितियों में भी चौराहे पर ध्वनि व वायु प्रदूषण को झेलते हैं। आज ईएनटी डॉक्टरों के यहां सबसे ज्यादा मरीज आ रहे हैं। इनमें ज्यादातर वायु व प्रदूषण के शिकार हैं। युवाओं में एक दूसरी सबसे बड़ी बीमारी पैदा हो रही है जो न केवल उनके स्वास्थ्य एवं जीवन के लिए हानिकारक है। इस बीमारी से सड़क पर चल रहे दूसरे राहगीर भी कई बार मौत का निवाला बन जाते हैं। यह बीमारी है 'कानों में लगी लीड'। सड़कों पर काफी लोग इस लीड को दोनों कानों में लगाकर चलते हैं, इस कारण उन्हें न तो किसी गाड़ी का हॉर्न सुनाई पड़ता है, न ही उन्हें किसी व्यक्ति द्वारा दी गई चेतावनी सुनाई देती है। कई बार ऐसे लोग रेलवे पटरियों व सड़कों पर स्वयं तो दुर्घटना का शिकार हो ही जाते हैं, कभी-कभी दूसरे को भी नुकसान पहुंचा देते हैं।
हॉर्न कब बजाएं गाइड लाइन जरूरी
हॉर्न का प्रयोग वाहन चालकों के लिए न केवल गाइडलाइन जारी करनी चाहिए बल्कि हॉर्न बजाने के फायदे व नुक्सान भी समझने चाहिए। क्योंकि ज्यादातर लोगों को हॉर्न बजाने से होने वाले ध्वनि प्रदूषण व उससे दूसरों को होने वाली परेशानी की जानकारी नहीं होती।
भूटान की सड़कों पर नहीं बजाता कोई हॉर्न : अरविंद चिटकारा
यूरोप, दुबई व सिंगापुर सहित अनेक विदेशी शहरों की सड़कों पर आपको हॉर्न की आवाज कहीं सुनाई नहीं देगी। हाल ही में भूटान की यात्रा करके लौटे अरविन्द चिटकारा ने बताया कि पांच दिन की भूटान की यात्रा के दौरान एक भी गाड़ी का हॉर्न बजता उन्होंने नहीं सुना। ऐसा ही विश्व के दूसरे देशों में देखने और सुनने को मिलता है। अब सवाल यह है कि हम भारतीय कब सुधरेंगे? हम कब हॉर्न बजाने का महत्व समझ पायेंगे तथा अपने बच्चों व अपने वाहन चालक को अनावश्यक हॉर्न बजाने से रोक पाएंगे। अभी पिछले दिनों सोशल मीडिया पर कड़ा संदेश देने वाला वीडियो देखा जिसमें ट्रैफिक पुलिस के जवानों ने ऐसे काफी लोगों को रोक कर रखा जो अनावश्यक रूप से अपने वाहनों के हॉर्न बजा रहे थे। उसके बाद ट्रैफिक पुलिस के जवानों ने बैंड बजाने वाले 10-15 आदमी बुलाए और बिना वजह अपने वाहनों का हॉर्न बजाने वाले चालकों के कानों पर तब तक बैंड बजवाया गया जब तक की उन्होंने अपने किये पर माफी न मांग ली। हालांकि यह कोई कानून नहीं लेकिन ऐसे लोगों को नसीहत देने का तरीका भर है।