मेरी राय
'कर' होता बचपन
'दो कलियां' फिल्म का गाना बहुत ही चर्चित रहा, जो आज भी गुन गुनाया जाता है। वह है 'बच्चे मन के सच्चे, सारे जग की आंख के तारे'...। यह भी कहा जाता है कि बच्चे भोले व मासूम होते हैं लेकिन अब जमाने के साथ बचपन भी बदल गया है। जी हां मैं बात कर रहा हूं बच्चों में बढ़ती आपराधिक प्रवृति की। हालत यह हो रही है स्कूल के बस्तों में किताबों की जगह चाकू-रिवॉल्वर तक मिल रहे हैं। शिक्षा के मन्दिर खून से रंगे जाने लगे हैं। यदि मैं केवल गाजियाबाद की बात करूं तो पिछले 18 महिनों में 4 बड़ी हिंसक घटनाओं को स्कूल के छात्रों ने अंजाम दिया है। 14 अप्रैल 2018 को शालीमार गार्डन में 2400 रुपये के विवाद में तीन दोस्तों ने अपने साथी के सिर में ईंट मारकर हत्या कर दी। 12 अगस्त 2018 को खोड़ा थाना क्षेत्र में सातवीं कक्षा के छात्र की हत्या उसके दोस्तों ने कर दी। एक अगस्त 2019 को लोनी के मेवला भट्टी गांव में नौवीं के छात्र की हत्या स्कूल के छात्र ने कर दी। 11 अक्टूबर को नेहरू नगर स्थित सरस्वती विद्या मंदिर में पढ़ने वाले 12 वीं कक्षा के छात्र राहुल की हत्या भी उसके साथी ने 1200 रुपये न लौटाने पर चाकू घोंपकर कर दी। इसी 19 अक्टूबर 2019 को शालीमार गार्डन के ही कोचिंग सेंटर में तीन छात्रों द्वारा अपने दसवीं क्लास के सहपाठी के सीने में चाकू घोंप दिया। इसमें छात्र गंभीर रूप से घायल हो गया और 25 टांके सीने में आये। यह पांचों घटनाएं समाज की एक बानगी मात्र हैं. जो इशारा कर रही हैं कि समाज किस ओर जा रहा है। आज जिस बचपन को अपना भविष्य बनाने हेतु पढ़ाई करनी थी वह मारपीट, चोरी व राहजनी सहित अनेक अनैतिक कार्यों में लिप्त हो गया है। छोटे बच्चों के बस्ते में चाक पाया जाना व उससे हमला करना एक अत्यन्त गंभीर सामाजिक बदलाव की ओर इंगित कर रहा है। यदि इस ओर जल्दी ही ध्यान नहीं दिया गया तो स्कूल गुंडागर्दी के अड्डे और अधिकतर छात्र अपराधी बन जायेंगे।
री राय है कि आज बच्चों के राह से भटकने का एक कारण एकल परिवार भी है।जहां माता-पिता व उनके अधिक से अधिक एक दो बच्चों तक सीमित रहता है। ज्यादातर घरों में माता-पिता दोनों ही नौकरी या व्यवसाय में लिप्त रहते हैं। उनके पास बच्चों के लिए समयही नहीं होताजो उन्हें जीवन की अच्छाई बुराई समझा सके ।बेटा, बहू के साथ माता पिता का परिवार में साथ रहना अब कम होताजा रहा है। इसलिए दादा-दादी की देखरेख व नियंत्रणभी बच्चों को नहीं मिल पाता।मातापिता के ध्यान न देने के कारण ज्यादातर बच्चे अपनी राह स्वयं निर्धारित करते हैं। यह कुंसगति में पड़कर बेकार हो जाते हैंयदि माता-पिता चाहते हैं कि उनके बच्चे भी देश के अच्छे नागरिक बने तो उन्हें अपने कार्य छोड़कर बच्चे की हर गतिविधि पर बारिकी से ध्यान देना चाहिए। उनके साथ कुछ पल बिताएं, बच्चों से बात करें ताकि उनकी मनोदशा की जानकारी मिल सके। साथ ही माता-पिता वास्तव में बच्चों का भविष्य बनाना चाहते हैं तो यदा कदा उनके बैग चेक अवश्य करें। साथ ही कोईपीटीएमभी न छोड़ें।आपके बच्चे के दोस्त कौन-कौन हैं? उसकी न केवल जानकारी करें बल्कि बच्चे के उन दोस्तों के चाल चरित्र पर भी नजर रखें।यदि प्रत्येक माता-पिता ने अपने बच्चों पर इतना ध्यान देना प्रारम्भकर दिया तो न केवल उनका बच्चा बल्कि हमाराशहर सुधर जाएगा।अन्यथा की स्थिति को देखते हुए मैं दावा कर रहा हूं कि यदि हम अपने बच्चों के प्रति सचेतन हुए तो भगवान न करे कि आपके अच्छे कर्मों से वह अपराधी बेशक न बने लेकिन अच्छा नागरिक नहीं बन पायेंगे। इसलिए सचेत हो जाएं,अभी वक्त आपके हाथ में है।