बीएचयू में संस्कृत शिक्षक डॉ.फिरोज का विरोध क्यों?
.जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान, मोल करो तलवार का, पड़ा रहने दो म्यान
कहीं उर्दू-अरबी पढ़ा रहे हैं हिन्दू तो मुस्लिम शिक्षक पढ़ा रहे हैं संस्कृत
यदि धर्म के चश्मे से कर्म देखना हो तो फिर मुस्लिम नाई, दर्जी, कारपेंटर, मैकेनिक आदि से भी बना लो दूरी
नई दिल्ली। संत कबीर को जाने से पहले ही यह आभास हो गया होगा कि उनको मृत्यु के सैकड़ों वर्ष बाद हिन्दू-मुस्लिम एक दूसरे से धर्म के साथ-साथ कर्म करने से भी परहेज करने लगेंगे, इसलिए उन्होंने आज के लोगों को नसीहत देते हुए शायद लिखा होगा कि जाति न पूछे साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान, मोल करो तलवार का, पड़ा रहने दो म्यान (तलवार रखने का कवर)। आज बीएचयू बनारस के छात्रों द्वारा पिछले 10-12 दिन तक किए गए एक विरोध ने दुनिया का ध्यान अपनी तरफ खींचा। धरना दे रहे छात्रों की मांग थी कि संस्कृत पड़ने के लिए विश्वविद्यालय ने एक मुस्लिम शिक्षक को योग्य मानकर उसकी नियुक्ति की थी। ये छात्र मुस्लिम शिक्षक से संस्कृत पड़ने वा विरोध कर रहे थे जबकि डॉ. फिरोज ने संस्कृत में पीएचडी कर रखी है। इस विषय में जानकारी करने पर जो तथ्य निकलकर आए हैं वह हिन्दू- मुस्लिमों के बीच धर्म व कर्म की राजनीति कराने वालों के लिए एक तमाचा है। बीएचयू में डॉ. फिरोज का विरोध करने वाले छात्र जान लें कि डॉ. फिरोज बीएचयू में संस्कृत के पहले मुस्लिम शिक्षक नहीं हैं बल्कि नाहिदा आबदी आज भी इस विश्वविद्यालय में न केवल संस्कृत पड़ा रही हैं बल्कि उन 2014 में महामहिम राष्ट्रपति द्वारा पद्मश्री से सम्मानित किया जा चुच्चा है। इसी महाविद्यालय में हिन्दू शिक्षक डॉ. रश्मि शर्मा उर्दू पढ़ा रही हैं। फिर तो इन छात्रों द्वारा डॉ. रश्मि शर्मा का भी विरोध करना चाहिए था कि हिन्दू वो भी ब्राह्मण होकर उर्दू क्यों पा रही हैं। इसके साथ ही यदि इलाहाबाद विवि की बात करें तो वहां पर किश्वर नवीं नसीम संस्कृत पड़ा रही हैं जो कि देश की नामी संस्कृत विशेषज्ञ मानी जाती हैं। इसी विश्वविद्यालय में डॉ. संजय उर्दू के शिक्षक हैं। अब आपको लेकर चलते हैं लखनऊ विश्वविद्यालय जहां शमशेर बहादुर उर्दू तथा डा. केके रस्तोगी अरबी व उर्दू पढ़ा रहे हैं। लखनऊ के ही नगर निगम विद्यालय में सुनील माथुर छात्रों को उर्दू की शिक्षा दे रहे हैं। इससे बड़ा उदाहरण मुस्लिम यूनिवर्सिटी अलीगढ़ में मिला है जी प्रो. शारिफ द्वारा गीता, रामायण व पाली दर्शन पर शिक्षा दी जा रही है। प्रो. शारिफ के अनुसार अलीगढ़ विश्वविद्यालय में ही उनके अधीन सात मुस्लिम छात्र संस्कृत में पीएचडी कर रहे हैं तो नीन हिन्दु शिक्षक उर्दू की तालीम दे रहे हैं। उपरोक्त नामी गिरामी विश्वविद्यालय के उदाहरणों से भी यदि इन बीएचयू के आन्दोलनरत छात्रों अथवा उसको हवा देने वालों की आंखें न खुली हों, यो आज भी धर्म की तुलना कर्म के साथ करना चाहते हों तो उन्हें परामर्श है कि नाई, दी, कारपेन्टर, मोटर मैकेनिक से भी काम करवाना छोड़ दें क्योंकि इन कार्यों को करने वाले 80 प्रतिशत लोग मुस्लिम धर्म से आते हैं। एक जानकारी और ज्यादातर धार्मिक गीत, भजन, आरतियों के ध्यान में सो जाते हैं, उनमें से अधिकतर मुस्लिम गायकों द्वारा गाये गये हैं जैसे रसखान ने तो कृष्ण भक्त में यहां तक कह दिया मानुस मैं तो वही रसखान, बसौं मिलि गोकुल गाँव के ग्वारन । जो पसु हाँ तो कहा बस मेरो, चरौं नित नंद की धेनु मैंझारन। मोहम्मद रफी ने भज मन नारायण, अंखियां हरि दर्शन को प्यासी, मोहन प्यारे आदि अनेकों भजन गाए हैं। एआर रहमान ने भी औम नमः शिवाय का भजन गाया है। इसके अलावा गणेश वंदना पर चतुर्भुजम नामक एक एलबम भी बनाया है।