भतीजों ने कराई राजनीति में कई बार चाचाओं की फजीहत
कह भई चाचा, हां भतीजा
उत्तर प्रदेश, पंजाब, महाराष्ट्र और हरियाणा में अनेक भतीजे ही चाचाओं के लिए बन चुके हैं मुसीबत
नई दिल्ली। महाराष्ट्र की राजनीति में पवार परिवार को अपनी एक पॉवर यानि धाक रही है। महाराष्ट्र की राजनीति के चाणक्य माने जाने वाले शरद पवार ने कभी हार नहीं मानी। वो वक्त से पहले ही दांव चलने के लिए जाने जाते हैं, लेकिन शुक्रवार- शनिवार की रात्रि में जो खेल हुआ उसकी कदम चाप शरद पवार भी नहीं सुन पाए। उन्हें उम्मीद भी नहीं थी कि उनका सगा भतीजा अजित पवार ही उनके लिए चुनौती बन जाएगा। महाराष्ट्र में शनिवार को सुबह इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से पूरे देश ने देखा, सभी अजित पवार द्वारा खेले गए चरखा दाव को देखकर आशर्यचकित तो जरूर थे, लेकिन अकेले भतीने अजित पवार ने ही चाचा के लिए मुश्किला खड़ी नहीं की है। राजनीति की दुनिया में उत्तर प्रदेश से लेकर पंजाब व हरियाणा के बाद महाराष्ट्र में भतीने द्वारा यह पटकथा लिखी गई। इससे पहले उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह के पुत्र पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव अपने सगे चाचा शिवपाल सिंह यादव को पानी पिला चुके हैं। यदि पंजाब की बात करें तो पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के विरुद्ध उनके भतीजे मनप्रीत बादल ने 2016 में बगावत कर दी थी। हरियाण में पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला के पुत्र अभय चौटाला को उनके भतीजे दुष्यंत माहाभतीजा चौटाला ने हाल ही में बीजेपी के साथ मिलकर हरियाणा में सरकार बनाई है। चाचा अभय चौटाला देखते ही रह गये। इसी तरह शुक्रवार की रात्रि को महाराष्ट्र में शरद पवार की ही पार्टी की कमान संभाल रहे उनके सगे भत्तीने अजित पवार ने भी अपने चाचा के साथ ऐसा दांव खेला। वैसा ही दांव खेलकर उनके चाचा शरद पवार 41 साल पहले खेलकर 1978 में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बन चुके हैं। उन्होंने ऐन वक्त पर कांग्रेस (यू) से अलग होकर जनता पार्टी के साथ सरकार बनाई और 1978 में 38 वर्षीय शरद पवार महाराष्ट्र राज्य के सबसे नुवा मुख्यमंत्री बने। कहते हैं कि इतिहास अपने को दोहराता है। यदि आपने दूसरों की राहों में पहले कांटे बोकर मुख्यमंत्री पद सधियाना है तो आपके भतीने के शरीर में ही तो आपके खानदान का रक्त दौड़ रहा है। उससे आप वफा की उम्मीद कैसे कर सकते थे।