शादी के महंगे लहंगे और शेरवानी एक दिन के बाद फिर काम न आनी
लहंगे पांच हजार से दो लाख तो शेरवानीभी तीन लाख तक की है बाजार में
गाजियाबाद। कहा जाता है हिन्दुओं में भाग्यशाली लोगों की शादी एक बार ही होती है। इसलिए इस शादी में दूल्हा हो या दुल्हन दोनों अपने सारे अरमान पूरे कर लेना चाहते हैं। इसलिए शादी पूरी शानो- शौकत से की जाती है। अपनी आर्थिक क्षमता अनुसार लोग शादियों में अपनी एक लाख से लेकर करोड़ों रुपये तक खर्च करते हैं। ज्यादा खर्च होने की तो कोई सीमा ही नहीं है। जहां खाने, सजावट व जेवरात पर शादी का 80 प्रतिशत बजट खर्च होता है। वहीं एक दूसरा मद भी है। जिस पर शादी में लाखों रूपये खर्च तो हो जाते हैं लेकिन शादी के दिन के बाद शायद ही उसका कभी उपयोग होता हो। वह है 'दुल्हन का लहंगा' व 'दूल्हे की शेरवानी'। शादी के दिन के बाद ये परिधान दुबारा शायद ही कभी पहने जाते हों। इसके साथ ही लहंगे व शेरवानी की कीमतें बाजार में पांच हजार से शुरू होकर पांच लाख तक हैं। न तो दूल्हे द्वारा उस शेरवानी को अपनी शादी के अलावा, कभी भविष्य में किसी समारोह में पहनी जाती है। केवल शादी बाद तो वह वेशकीमती शेरवानी शायद ही अलमारी से भी बाहर ही नहीं आती है। कमोवेश यही हाल महंगे व भारी लहंगों का भी है। शौक-शौक में पहले तो दुल्हन द्वारा महंगा व भारी लहंगा खरीद लिया जाता है। कई बार लड़के वालो के द्वारा अपनी दुल्हन के लिये महंगा से महंगा लहंगा खरीद लिया है जिसको केवल शादी के दिन ही पहना जाता है, उसे पहनकर दुल्हन बहुत सुन्दर ज्यादा लगती है। जब इस महंगे व भारी लहंगे को पहन कर दुल्हन का एक कदम भी चलना भारी हो जाता है, तब से अपनी गलती का अहसास होता है। क्योंकि किसी-किसी महंगे लहंगे में तो पांच किलो तक वजन होता है। ऐसे में इतना भारी लहंगा पहन कर चलना, खड़े होना, फेरे पर बैठने में दुल्हन को कितना मुश्किल होता होगा। इस सब के बाद दुल्हन उस भारी लहंगे से इतना आजिज आ जाती है कि शादी के बाद में दुबारा किसी भी अवसर पर उस लहंगे को पहनने का साहस भी नहीं कर पाती। इस तरह शादी के बाद दुबारा ये बेशकीमती लहंगे व शेरवानी कभी काम नहीं आते।