मेरी राय
और कब तक जिन्दा जलते रहेंगे मानव
जलते रहेंगे आन सुबह इलेक्ट्रॉनिक्स मीडिया ने दिल दहलाने वाली खबर दिखाई, जिसमें दिल्ली की अनाज मंडी के फिल्मिस्तान सिनेमा के पास अनाजमण्डी क्षेत्र के एक चार मंजिला बिल्डिंग में भयंकर अग्निकांड हो गया, जिसमें शाम तक दिल्ली पुलिस प्रशासन ने 43 लोगों के मरने की पुष्टि की तथा लगभग 100 से ज्यादा लोग दिल्ली के तीन अस्पतालों में जिन्दगी के लिए मौत से लड़ रहे हैं।लिए मौत से । चारों तरफ चीख-पुकार मची हुई है। जिन लोगों के परिजन इस फैक्टरी में काम करते थे वे अपने-अपने खोये हुए लोगों को अस्पतालों में ढूंड रहे हैं,जिनके परिजन अस्पताल में घायल नहीं मिले वह हिम्मत करके मोर्चरी में अपनों को तलाश कर रहे हैं। यह अग्निकांड एक आवासीय क्षेत्र की बहुमंजिली बिल्डिंग में हुआ, जिसमें छोटी-छोटी कई फैक्ट्रियां चलाई जा रही थीं। आवासीय क्षेत्र में फैक्ट्रियां चल रही है तो क्या इसका पता दूसरे संबंधित सरकारी विभागों को नहीं होगा, जो अब हादसा होने पर सभी पल्ला झाड़ लेंगे। यह दिल्ली का पहला अग्निकांड नहीं है। इससे पहले भी दिल्ली व शाहदरा में अनेक बड़े-बड़े अग्निकांड होते रहे हैं। अगर दिल्ली शाहदरा की बात छोड़ दें तो गाजियाबाद के राजनगर सेक्टर-14 में तीन साल पहले एक अग्निकांड हुआ था, जिसमें पांच लोगों की मौत गाजियाबाद के फरुखनगर क्षेत्र में संचालित अवैध पटाखों की फैक्ट्री में अक्सर आग लगत्ती रहती है। लेकिन आज भी फरुखनगर में कुछ नहीं बदला, वहां चोरी-छिपे आतिशबानी भी घरों में बनाई ना रही है। जब कोई फिर बड़ा हादसा हो जाएगा तो कुछ दिनों के लिए कुछ सरकारी विभाग सक्रिय हो जायेंगे। खानापूर्ति करने के लिए तीन-चार छोटे कर्मचारी निलम्बित करके ऐसी जांच कमेटी बना दी नाती है, जिसकी रिपोर्ट या तो आती नहीं है यदि साल दो साल में आ भी जाय तो इस पर कोई चर्चा, तब तक नहीं होती जब तक उस क्षेत्र में कोई दूसरी बड़ी घटना न हो जाये। करोल बाग क्षेत्र के उपहार सिनेमा में गत 13 जून 1997 को बॉर्डर फिल्म दिखाई जा रही थी तभी सिनेमा के बाहर रखे ट्रांसफार्मर में आग लग गई तथा इस भयानक अग्निकांड अग्निकांड ने पिक्चर देख रहे 59 लोगों को अपना शिकार बना लिया। दिल्ली के बवाना औद्योगिक क्षेत्र में 21 जनवरी 2018 की तीन फैक्ट्रियों में आग लगी। इसमें 17 लोग, जिनमें महिलाएं भी थीं, अपनी जान गंवा बैठी थीं। 12 फरवरी 2019 को दिल्ली के ही करोलबाग के अर्पित होटल में भी सुबह लगी आग ने 17 ग्राहकों को मौत ने अपने आगोश में ले लिया था, जो किसी काम से होटल में रुकने के लिए आये थे। अभी दिल्ली के नरेला औद्योगिक क्षेत्र की एक फैक्ट्री में 16 नवम्बर को आग लगी। जूते-चप्पल बनाने वाली फैक्ट्री में लगी इस भयंकर आग ने भी 18 लोगों को चपेट में ले लिया था। दिल्ली में तो इस तरह आग लगने की महीने में तीन-चार बड़ी घटनाएं होती रहती हैं लेकिन सवाल यह है कि हम घटनाओं से सबक नहीं लेते। औद्योगिक क्षेत्र में यदि आग लग जाये तो समझ में आता है। वहां तो फैक्ट्रियों में हादसे होना स्वाभाविक हैं लेकिन आवासीय क्षेत्र में चोरीछिपे फैक्ट्रियां चलने पर किसी को जानकारी न हो यह समझ से परे है। दिल्ली के जिस क्षेत्र में आज यह भयंकर अग्निकांड हुआ है, वहां की गलियां इतनी संकरी थी कि फायर ब्रिगेड की गाड़ियों को भी आग तक पानी पहुंचाने में काफी मशक्कत करनी पड़ी। फैक्ट्री के एक-एक कमरे में 20-20 मजदूर दरवाजा बन्द करके सो रहे हैं, वही ज्यादातर हादसे का शिकार हुए हैं।
राय है कि दिल्ली हो या उत्तर प्रदेश, फैक्ट्रिया हमें आधासीय इलाकों म नहीं लगानी चाहिए क्योंकि जय अग्निकांड होते हैं तो संकरा आवासीय क्षेत्र होने के कारण जनहानि बहुत ज्यादा हो जाती है। यदि फैक्ट्रीखुले मे लगेगी तो फायर टीम जल्दी पहुंच सकती है। सुरक्षा मानक पूरे न होने पर कार्यालयों में भी बड़े हादसे हो जाते है। देश के लोग 24 मई 2019 को गुजरात के सूरत शहरमेहुए भयंकर अग्निकांड अभीतक नही भूले होंगे, जिसमेट्यूशन इन्स्टीट्यूट में आगलगने से 20 बच्चे जल करवकूदकरमरगये थे। उसके बाद गाजियाबाद के सभीट्यूशन केन्द्रों को पुलिसने बन्दकरा दिया था लेकिन ताज्जुब है कि आजचार महीने बाद फिर सब कुछ सामान्यहो गया है। प्रशासन द्वारा बन्द कराये ट्युशन इंस्टीट्यूटों में अब फिर से बहार आ गई है। यह रौनक तब तक चलती रहेगी जब तक कोई दूसरा बड़ा हादसा नहीं हो जायेगा।हम लोग हादसा होने के बाद जागते हैं, पहले उसके होने की प्रतीक्षा करते रहते हैं। हम लोगों की यही लापरवाही ही दूसरों की जान लेती है।