मेरी राय

मेरी राय


पहले शादियों में गिने जाते थे हाथी-घोड़े और अब विधायक, सांसद व मंत्री


पुराने लोग यदि, अपने समय की शादियों को याद आन करें तो उस समय उस शादी की चर्चा सबसे ज्यादा रहती थी, जिस शादी की चड़त में चारान के साथ ज्यादा हाथी व घोड़े चल रहे होते थे अथवा जनवासे (बारातघर) के बाहर जिस शादी में जितने ज्यादा सजे हुए हाथी व घोड़े दरवाने पर दिखाई देते थे, उसी शादी को उतनी ही नादा वैभवशाली माना जाता राष्ट्रपति पदक से सम्मानित था। अतिथिगण भी जाते समय आयोजक को इतनी अच्छी शादी करने के लिए शुभकामनाएं देते नहीं थकते थे। इन्हीं शुभकामनाओं को सुनते-सुनते आयोजक की गर्दन गर्व से तिरछी हो जाया करती थी। ऐसी शादियों को इलाके में कई दिन तक चर्चा होती थी कि भई, ऐसी शादियों को इलाके में कई दिन तक चर्चा होती थी कि भई, फलाने ने अब तक सारी शादियों को फेल कर दिया। उसकी शादी में चारपांच सने हुए हाथी खड़े थे और ऊंट, घोड़ों की तो गिनती ही नहीं थी। बहुत दिल खोलकर शादी की है। मई, मजा आ गया। इसी भाव के साथ लोग अपने-अपने शब्दों में, आयोजक की प्रशंसा करते देखे जाते थे। लेकिन आज भाई वक्त ने ऐसी करवट ली है कि हाथी, घोड़ों और ऊंटलेकिन आज भाई वक्त ने ऐसी करवट ली है कि हाथी, घोड़ों और ऊंट की बजाय शादियों में अब यह गिनती होने लगी है कि फलाने आदमी की शादी में शहर के चारों विधायक, सांसद, महापौर सभी लोग अये थे। पूर्व विधायक और सांसदों की तो गिनती ही नहीं है। इसी से लोग अयोजक की राजनैतिक ताकत का लोहा मानने लगते हैं कि इस व्यक्ति के बड़े-बड़े नेताओं से संबंध बहुत अच्छे हैं। सारे तभी तो सोटे-बड़े नेता इसके बुलावे पर दौड़े चले आये। इस तरह जहां पहले ज्यादा हाथी, घोड़े व कंट वाली शादी को अच्छी माना जाता था, वहीं अब उस शादी को ज्यादा सफल माना जाता है जिसमें सबसे ज्यादा बड़े-बड़े नेता शामिल होते हैं। शादियों की तो बात ही खेड़ दें अब तो शोकसभा में भी लोग बड़े-बड़े नेताओं को अपने यहां आने के लिए मनुहार करते दिखाई देते हैं। जब मैं शादियों में जाता हूं तो हैरान हो जाता हूं कि आज की शादियां, प्रतिस्पर्धा के चलते कितनी महंगी होती जा रही हैं। साथ ही इन शादियों में पैसे व चेतहाशा अन्न की बर्बादी से मन बहुत दुखी होता है। लोग आजकल शादियों में खाते कम और डस्टचिन में फेंकते ज्यादा हैं, वह भी बेचारे क्या करें, जब आयोजक द्वारा एक-एक शादी में 150 से 200 तक आइटम बनाकर परोसे जाते हैं तो 400 ग्राम के पेट की धमता वाला व्यक्ति क्या-क्या खा ले। शादियों को आनकल रैलियों का स्वरूप दिया जा रहा है। जिन दो शादियों को आनकल रैलियों का स्वरूप दिया जा रहा है। जिन दो परिवारों की शादियां आसपास के दिनों में होती हैं तो लोग दोनों शादियों की तुलना अपने घरों, पार्क या सड़कों पर बहुत दिनों तक करते हैं कि अमुक व्यक्ति की शादी में बहुत भीड़ थी। इसी भीड़ को जब चर्चा चलती है तो शादी समारोह में आने वाले विधायकों, मन्त्रियों, सांसदों, महापौर व बड़े प्रशासनिक अधिकारियों की भी गिनती होती है जिसमें शादी में ज्यादा होते हैं, वही शादी सफल मानी जाती है। आयोजक को भी ज्यादा निगाह व नवजो इन्हीं नेताओं की तरफ न्यादा होती है। इन नेताओं को चैठाने की तो अलग से विशेष व्यवस्था होती ही है, साथ ही उनको खाना खिलाने के लिए भी वेटरों की पूरी फौज तैनात कर दी जाती है। 


राय है कि इन स्थमें सबसे ज्यादा आर्थिकलाम में तो कैटरही रहता है औरघाटे मेंव्हअतिथि,जोइतना सराखाव व्यंजन देखकरहीदुखी होकर रह जाता है कि वह इस छोटे से पेट में क्या-क्या खाये या छोड़े। सबकुछथोड़ा-थोड़ा चखते-चखते वह केवल आधे आइटमों तक मुश्किल से ही पहुँच पात है।वही रोज शदियों मेजानेवाले व्यक्ति तो चटखेमवे के एक दोफ्ते खकरयातोदूसरीशादी में लिफाफादेनेचले जाते हैयधरजकरव्हापरपसद का भोजनकरते हैं।खानेपरहुईबर्बादी के बाद अबशादियों के उन असली आकर्षणे की बात करते है, जिन्हें हरेक आयोजक अपने यहां बुलानेकोलालायित रहता है। सायहीवह यह भी चाहता है कि "नेताजी"उसके यहाज्यवासेज्यादादेररुके ताकि सुबह को वह गर्दन सीची करके दूसरों पर रौब गालिब कर सके कि फलां सांसद हमारी शादी में दो घंटे तक जमे बैठे रहे। बहे नेताओं के साथ-साथ स्थानीय पत्रकारिता से जुहे लोगों की भी मार्केटकम बहे नेताओं के साथ-साथ स्थानीय पत्रकारिता से जुहे लोगों की भी मार्केटकम नहीं है। अयोजक स्थानीय समवरपत्रों में अपने समारोहकासचिवसमवरप्रकाशन की इच्छा को दिल में संजेकर उनसे भी अपने यहां आने की गुजारित करता है। मैतोइस नतीजे पर पहुवा हूं कि इसतरह से तो लोग अपने यहा आज शादी समारोह में ज्यादा से ज्यादा नेतागणों, व्यापारमण्डलो, प्रशासनिक अधिकारियो, मीडिया जगत को एकत्र करके समाज में अपना रौब गालिय करना चाहते हैं जैसे पहले लोग अपने समारोह में हाथी-घोड़ों को सजाकर घमंड करते थे।


Popular posts