यह कैसा है कानून

आशा देवी को अदालत ने फिर दी निराशा


यहकैसाहै कानून...


नरपिशाचों के लिए हैं सभी मानव अधिकार


पीड़ित को मिल रही है तारीख-पे-तारीख


15 साल से नहीं हुई किसी भी बलात्कारी को फांसी


नई दिल्ली। 16 दिसम्बर 2012 की भयानक रात में जिन 6 नरपिशाचों से अकेली लड़ी निर्भया के वे अपराधी आज भी फांसी के फंदे के नजदीक होते हुए भी बहुत दूर हैं। निर्भया की माता आशा देवी 18 दिसम्बर को कोर्ट में इस आशा के साथ गई थी कि आज उनकी बेटी को इन्साफ जरूर मिलेगा और हैवानों को फांसी पर लटकाया जाएगा लेकिन इस बार भी पहले की तरह मिली उन्हें अगली तारीख, वो भी 20 दिन आगे की। सात साल से एक दौड़ते-दौड़ते 18 दिसम्बर को उनका मन टूट गया, आंखें छलक आई और न्यायाधीश से पृष्ठ बैठी कि “मुजरिमों के पास तो सभी अधिकार हैं, हमारा क्या"? आशा देवी के इन दर्द भरे शब्दों से स्पष्ट हो रहा है कि देश का कानून आज भी पीड़ितों से ज्यादा, अपराधियों के अधिकारों का अदालतों में ज्यादा ध्यान रखा नाता है क्योंकि अपराधियों के हित का ध्यान रखने हेतु बड़े-बड़े काबिल वकील अनेक प्रकार की दलीलें निकालकर अपराधी को सजा से बचाते रहते हैं। यही कारण है कि आज हमारे देश में अपराध रोज बढ़ रहे हैं क्योंकि कानूनी पेचीदगियों का लाभ वकील लोग अपराधी को दिला देते हैं। इससे अपराधी एक जुर्म करने के बाद जेल से बाहर आ जाता है तो वह दूसरे जुर्म करने की तैयारी में लग  जाता है, क्योंकि उसे कानून को कोई डर नहीं रहता। इसके विपरीत दूसरे देशों में अपराधी को उसके किये की सजा बहुत जल्दी मिलती है तथा वह सजा इतनी भयानक होती है कि जिसे देखकर दूसरे को भी सबक मिलता है।


15 साल से किसी बलात्कारी को नहीं हुई है फांसी


आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि भारत में बलात्कारी हत्यारे को 2004 के बाद फांसी नहीं हुई है। 2004 में पश्चिमी बंगाल में रहने वाले धनंजय चटनों को एक 18 वर्षीय लड़की के साथ बलात्कार व हत्या करने पर फांसी दी गई थी। 2004 से 2019 तक 15 वर्षों में देश के अन्दर एक भी बलात्कारी हत्यारे को फांसी नहीं दी गई है। हमारे देश में इन 15 वर्षों में लगभग पांच लाख से अधिक बलात्कार के केस दर्ज हो चुके हैं। सूत्रों के अनुसार लगभग पचास हजार से ज्यादा अपराधियों पर बलात्कार के बाद हत्या करने के मुकदमें दर्ज हुए हैं। लेकिन इन पचास हजार में से एक भी अपराधी को 15 सालों में बलात्कार के साथ हत्या के जुर्म में फांसी नहीं दी गई। आशा देवी को समझना चाहिए कि जब सुरेन्द्र कोली को 19 रेपमर्डर करके 13 साल में फांसी नहीं हो पाई तो निर्भया के हत्यारों को तो अभी केवल सात साल ही हुए हैं जबकि उनको फांसी के फंदे तकपहुंचने के लिए चार बड़े पड़ाव हैंन जाने किस पड़ाव में उनके काबिल वकील साहब को कौन सी धारा मिल जाए जिसे माननीय न्यायाधीश महोदय के सामने पेश करके, वो फिर निर्भया के हत्यारों को बचा ले जाएं जब तक इन्हें फांसी न हो जाए तब तक अपने देश में सब कुछ सम्भव है।


6 केसों में हुई फांसी, फिर भी फांसी के फंदे से आ गया वापस


गजियाबाद की डासना जेल में नोएडा के कुचर्चित निठारी कांड का आरोपी सुरेन्द्र कोली नामक ऐसा नरपिशाव भी बंद है, जिसने 19 लड़कियों के साथ बलात्कार करके उनकी हत्या की।सुरेन्द्र कोली को निठारी (नोएडा) में 19 लड़कियों के साथ बलात्कारवहत्या के जुर्म में 19-12-2006 को गिरफ्तार किया गया। सुरेन्द्र कोलीको अप्रैल-2007 को अदालत द्वारा पहली फांसी की सजा हुई, फिर मई-2007 को दुसरीव27-09-210 को तीसरीफासी की सजा हुई। इसके बाद 2014 तक सुरेन्द्र कोली को 6 लड़किवे के साथ बलात्कार वहत्या के जुर्म में 6 बार फासी की सजादी गई। वही इस सुरेन्द्र कोली को 3 सितम्बर 2014 में डेथ वारंट भी जारी हो गया था तथ4 सितम्बर 2014 को फासी देने के लिए गाजियाबाद से मेरठ जेल भेज दिया गया। मेरठ के जलादकालुने फासी की रस्सीसेफदा भी बना लिया था तभी 4 सितम्बर को वकील साहब ने एक तकनीकी पाइट दूट लिया तथा सुरेन्द्रकोली ऐसा बचा कि आज तक जिदा है।


ये हैं वे चार पड़ाव जो फांसी परलटकने से रोकते हैं सबसे पहले क्यूरेटिव पिटीशन है, जिसे अक्षयके वकील ने कहा है कि यह विकल्प बचा हुआ है। अपराधियों को कानुन इसकी इजाजत देता है। क्यूरेटिव पिटीशनइसकेखारिज होने के बाद राष्ट्रपति के पास दया याचिका डाली जाती है।जबतक राष्ट्रपति उसे खारिजनहीं करेंगे तब तक फासीका सवालही नहीं। तीसरापड़ाव है दयायचिका इसके खारिज होने के बाद, केस उसी निचली अदालत मेजायेगा जहां पहली बार फांसी की सजा हुई थी। वो ही निचली अदालत हेच वारंट जारी करेगी, जिसमें तैयारी करने हेतु 15 दिन का समय दिया जाता है। चौथा पड़ाव है अपराधी की अन्तिम इच्छा. अन्तिम इच्छा जानने अथवा उसकी सम्पति की वसीयत करने की निठारी कांड के अपराची सुरेन्द्र कोली को चौवे पड़ाव के बाद तकनीकी कमी का लाभ मिला, इसलिए आज भी अपने देश की अदालतों से जब तक अपराधी को उसके किये कीसजान मिल तब तक कुछ भी हो सकता है।