मेरी राय

मेरी राय


 तेरा सब मुझको अर्पण, क्या लागे तेरा


पिछले दिनों दूर की रिश्तेदारी में एक परिचित का निधन हो गया। अन्तिम संस्कार में शामिल होने के लिए मेरा भी जाना हुआ। जिनका निधन हुआ था वह बहुत ही धनवान थे, उनके पास अकृत सम्पत्ति थी। उन्होंने इस सम्पत्ति को अपनी जीवन यात्रा में दिनरात कड़ा परिश्रम करके एकत्र किया था। करीब 20 साल पहले इनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। कुल स्थिति ठीक नहीं थी। कुल मिलाकर इनकी आमदनी उस समय मुश्किल से 10 हजार रुपये महीना रही होगी लेकिन अपनी मेहनत व व्यापारिक कुशलता के कारण किसी तरह करोड़ों रुपये जुटा लिए। उनकी अन्तिम यात्रा की तैयारियां प्रारम्भ हो गई तथा उनकी बॉडी उनकी अन्तिम यात्रा की तैयारियां प्रारम्भ हो गई तथा उनकी बॉडी को स्नान आदि कराकर, अर्थी पर लिटाने की तैयारी की जाने लगी। इसी बीच उनके, छोटे बेटे की बहू वहां पहुंची और नौकर रामू को निर्देश देकर बोली कि पापाजी के सभी चिस्तर, पलंग, कपड़े व दूसरी सभी वस्तुएं निकाल कर घर के बाहर दरवाजे पर रख दो, कोई ले जायेगा। थोड़ी देर में नौकरों ने मृतक द्वारा प्रयोग किया गया सभी सामान जैसे उनके पहनने के कपड़े, जूते, बिस्तर, बची हुई दवाइयाँ आदि को घर के बाहर दरवाजे पर रख दिया। उन्हें स्नान कराने समय तभी मेरी निगाहें उनके शरीर पर पड़ी, जिस पर से उनकी चैन,अंगूठियां व ब्रासलेट आदि कुछ भी नहीं था, जि- वो हर वक्त पहने रहा करते थे। घर वालों ने उनके मरते ही, मृतक के शरीर से वो सारे सोने के जेवरात उतार लिये थे, जिन्हें वह सदैव पहना करते थे तथा कभी भी अपने शरीर से अलग नहीं होने देते थे।


नहीं होने देते थेने उनके द्वारा उपयोग की गई वस्तुएं जैसे विस्तर, कपड़े, जूते-चप्पल, दवाइयां तो चाहर फेंक दी लेकिन उनके शरीर से उतारे गये कीमती जेवरात संभाल कर रख लिये। इसके अलावा उस मृतक व्यक्ति ने अपने जीवन में अच्छे-बुरे कर्म इसके अलावा उस मृतक व्यक्ति ने अपने जीवन में अच्छे-बुरे कर्म करके, जो मकान, दुकान, फ्लैट, जमीन-जायदाद, जेवरात तथा नकद धनराशि जोड़ी थी, उसको तो घर वालों ने अन्दर रस लिया और उसके द्वारा उपयोग की गई रोजमर्रा की वस्तुएं घर से बाहर फिकवा दी। कहींकहीं तो ऐसा देखने में आता है कि अंतिम यात्रा निकलने से पहले ही घर वालों के हाथ में जो भी कीमती सामान लगता है, उसे अपने कब्जे में कर लेते हैं। कहीं-कहीं तो ऐसा लगने लगता है कि जैसे घरवाले इसके मरने का ही इन्तजार कर रहे थे।


का ही इन्तजार कर रहे थे। इस दृश्य को देखकर मुझे 'ओम जन जगदीश हरे' नामक प्रसिद्ध आरती के अन्त में लिखी कुछ लाइनें स्मरण हो आई 'तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा'। मैंने उन दृश्यों से द्रवित होकर आरती के शब्दों को इस तरह परिवर्तित किया, 'तेरा मुझको अर्पण ज्या लागे तेरा' इसको ही मैंने स्तभ का इस बार शीर्षक बनाया है। यह देखकर मेरे दिल में एकाएक यह सवाल काँथा कि मृतक के द्वारा प्रयोग चिस्तर, पहने गये कपड़े, जूते, चप्पल जब इतने अस्त हो गये कि सव बात्रा निकलने से पहले उन्हें घर से बाहर फिंकवा दिया गया, तब उसी शरीर के उतारे गये आभूषण कैसे अपवित्र नहीं हुए। मैंने आजतक किसी को भी, मृतक के जेब से निकले पैसे, शरीर से उतारे जेवरात को सड़क पर रखते या किसी को दान देते हुए नहीं देखा।


आखिर ने विरोधाभास कैसा। मृतक व्यक्ति के जीवनकाल में, सभी उससे मिलते तथा बातचीत करते हैं लेकिन मृत्यु के पश्चात उसके प्रिय घरवालों को ही उनके शरीर को छूने से भी डर लगने लगता है। आन आदमी जिन्दा आदमी से कम डरता है तथा मरे हुए से ज्यादा। इसलिए अपने ही परिवार के मृतक व्यक्ति के शरीर के साथ अकेले में एक पल भी नहीं बिताता तथा परिवार के उस व्यक्ति को जिसे मृत्यु के पश्चात उसके नाम से नहीं, बल्कि लाश कह कर सम्बोधित किया जाता है, जिसको जल्दी से जल्दी घर से निकाल कर, घर को धोकर पवित्र किया जाता है।


 राय ते यह है कि सब कुछ देखकर कभी-कभी लगता है कि हम किसके लिए पूरे जीवन परित्रमकरके धन-सम्पदाजोड़ रहे हैं, क्या उनके लिए, जिनको हमारे शरीर से प्राण निकलने के बाद, शरीर को छूने से भीडरलगेगााया उनके लिए जोहमारेकपडे, बिस्तर, पलंग,जूते चपल,चश्मे,घड़ी सेतोइतनीज्यादानफरत करेंगे कि उसे हमारीमृत्यु के पक्षात घरके अन्दर रखने की तो बात दूरकी है, बल्कि उन्हें छूने से भी डरेगे।वहीं दूसरी ओर यही परिवार के लोग उसी मृतक के शरीर के सोने के आभूषणवकपड़ों से नकदी निकालकर अलमारी में सुरक्षित कर देते हैं। अधिकतर परिवारों में तोइन कीमती वस्तुओं के बंटवारे परतेरहवीं से पहले अधिकतर परिवारों में तोइन कीमती वस्तुओं के बंटवारे परतेरहवीं से पहले हीझगडे शुरू होजाते हैं वहीं उसी मृतक की आखिरीयादगारकपड़े,वश्मा,जूते. चपल, बिस्तरों पर कोई अपना हक नहीजमता बल्कि जबतक घर से बाहर से कोई सफाईकर्मी उन्हें उठाकर नहीं लेजातातबतक उनके दिल में बनी ही रहती है। इसका स्पष्ट मतलब घरवालों को भी केवल उसी धन-दौलत से ही लगव है, जिसे उसनेदुसरों की बुराई-भलाई लेकरपुरी जिन्दगीपरिश्रम करकेएकत्र किया है। घरवले मृतक को केवल उसके द्वारा छोड़ी गई सम्पत्ति के लिये याद रखते हैं, वह भी केवल कुछ दिनों के लिए, बाद में सब भूल जाते है। लेकिन समाज में उस व्यक्ति को उसके अच्छे कर्मों के लिए सदैव याद किया जाता है। इसलिए व्यक्ति को जीवन में धन एकत्र करने परकम, सत्कर्म करने पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए। इसलिए कहा गया है


पत्रकपूत तोक्यों धन संचय, पुत्र सपूत तो क्यों धनसक्य।


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