मेरी राय
एक नई कुरीति है 'भाजी'
पहले शादियों के बाद घरों में जो 'भानी' बांटी जाती थी अब वर्तमान समय में उस 'भाजी' ने बड़ा वीभत्स रूप ले लिया है और एक नई कुरीति के रूप में प्रचलित हो रही है। इस भाजी' शब्द के इतिहास पर यदि गौर करें तो 70-80 के दशक तक, 'भाजी' केवल बूंदी के लड्डू व नमकीन मठरियों तक ही सीमित थी। उस समय शादी के बाद जो महिलाएं घरों में 'भाजी' बांटने का काम करती थीं, उन्हें नायन कहा जाता था। जिनका शादी वाले घरों में बहुत महत्व होता है। नाच, गाना, बुलावा देना जैसे कार्य इनके बिना नहीं होते थे तथा शादी के दौरान जो भी 'नेक' (न्योछावर राशि) निकलती थी वह इनको ही मिलती थी। अब तो एनसीआर में होने वाली शादियों से 'नायन' ही लुप्त हो गई हैं।
यही नायन शादी के बाद, टोकरों में लड्डू-मठरी भरकर उन घरों में जाती थीं, जिन घरों से शादी वाले घर का 'व्यवहार' चलता था। नायन को यह जानकारी होती थी कि किस घर से शादी वाले घर के कितने नजदीकी संबंध हैं। उसी के अनुसार नायन द्वारा 'भानी' नोलकर दी जाती थी। उस समय जिस घर से अच्छे सम्बंध होते थे, वहां सवा सेर 'भाजी' तोलकर दी जाती थी, बाकि घरों में आधा सेर, तीन पाव तोल कर 'भानी' बांटी जाती थी। भानी लेने के लिए बर्तन भौजी लेने वाले को ही खुद अपना बर्तन लाना होता था। ये थी पहले भाजी बांटने की तस्वीर, और यदि इसे आन की भाजियों से मिलान करें तो पता लगेगा कि अब हम सब मिलकर समान में कितनी बड़ी कुरीति को पैदा कर रहे हैं। पहले और अब के समय में एक और विशेष अन्तर यह भी आ गया है कि पहले शादियों के दौरान जो भाजी आती थी वह घरों में चाव के साथ खाई जाती थी और आज जो महंगी-महंगी भाजी बांटी जाती है, उसे शायद ही किसी घर में खाया जाता होगा। ये महंगी-महंगी भानियों के डिब्बों को एक-दो दिन बाद काम वली बाइयों, ड्राइवरों या अन्य कर्मचारियों में बांट दिया जाता है। आजकल शादी च अन्य समारोहों में अतिथियों से लिफाफा लपकते समय ही महंगी भाजी का डिब्बा थमाना आयोजक की मजबूरी हो गई। अयोजकों में भाजी के महंगे-महंगे डिच्चे बनवने में भी प्रतिस्पर्धा हो गई है। लोग महंगी से महंगी भाजी बनवाकर बांटने को अपनी इज्जत मानते हैं। अब तो भानी के लिए ब्रांडेड दुकानों से डिब्बे पैक करवाकर मंगाये जाते हैं। कोई 'चौकानेर' से भाजी के डिब्बे मंगवाता है तो कोई चांदनी चौक से 'कुंवरजी' की भाँनी बांटता है। अब कुछ लोगों को सिकन्द्राबाद (बुलन्दशहर) के सिंघल स्वीट्स की अब कुछ लोगों को सिकन्द्राबाद (बुलन्दशहर) के सिंघल स्वीट्स की भाजी भा रही है तो कोई जहांगीराबाद के प्रसिद्ध हलवाई से भानी के डिब्बे बनवाकर बांट रहा है। सवाल यह है कि भाजी के नाम पर शादियों में जो लाखों रुपये खर्च किये जा रहे हैं उसका कोई औचित्य नहीं है। क्या हम महंगी-महंगो भौजियां बांटकर एक नई कुरीति को तो जन्म नहीं दे रहे हैं।
जन्म नहीं दे रहे हैं। आजकल शादी व अन्य अवसरों पर भाजी बांटना एक आवश्यक आवश्यकता बन गई है। अतिथि भी समारोह स्थलों में प्रवेश करते ही कनसहयों से यह ताड़ लेते हैं कि भाजी के डिब्बे किस क्वालिटी के हैं। अतिथि भी मेजबान को लिफाफा थमाते ही उससे भाजी लपकने के लिये आतुर रहता है। कोई-कोई एक दो बार औपचारिकतावश मना जरूर करता है, लेकिन कोई भी व्यक्ति अपने भांजी के डिलो को छोड़कर जाते हुए नहीं देखा।
भाजी लेकर जाने वाले व्यक्ति को भी मालूम है कि ये भाजी न तो घर में उसे खानी है और न ही किसी दूसरे सदस्य के काम आने वाली है। महंगी से महंगी भाजी के डिब्बे को घर पर लाकर उसे खेलकर जरूर देखता है तथा कुछ दिनों के लिए उसे अपनी डायनिंग टेबल पर सजा लेता है। इसके बाद से महंगी भानी का डिब्या कामवाली बाई या ड्राइवर के सुपुर्द कर दिया जाता है। जिसे आयोजक ने बहुत शौक से, मोटा पैसा खर्च करके पैक कराया है।
भाजी ज्यादातर घरों में वैसे भी इसलिए नहीं खाई जाती कि घरों में उम्रदराज सदस्य तो ज्यादातर शुगर के मरीज होते हैं और बच्चों को पिज्जा, चाऊमीन व मोमोज से ही फुरसत नहीं होती लेकिन फिर भी आयोजक भानी ना बांटे तो अतिथि भी आनकल लिफाफा देकर खाली हाथ वापस आते हुए अपनी बेइजती महसूस करते हैं
राय है कि इस भाजी नामक कुरीतिने शादी, परोजनव अन्य समारोहों को और ज्यादा महंगा कर दिया है।जो महंगी भाजी अतिथि के यहा खाई भी नाज सके उसे ऐसी भाजी का लेन-देन समान कर देना चाहिये। वैसे भी मेरे विचार में भाजी लेने-देने का प्रचलन आम अतिथि के लिये नहीं होना चहिए। ये भाजी केवल परिवार की बहन-बेटियों को देने तक ही सीमित होनी चाहिए। इससे ज्यादा भाजी का लेन-देन रोकना समाज में अति आवश्यक है। हमें भाजीकी जगह कोई दूसरा विकल्प सोचना चाहिये जो भविष्य में उपयोगी हो। मेरा तो प्रस्ताव है कि शादी में भाजी के डिब्बों की जगह यदि घर के अन्दर रखने वाला कोई भी प्लाट (पैया) गिफ्ट किया जाए तो वह लम्बे समय तक उस शादी की याद को भी ताजा रखेगाव साथ ही मेहमान भी पौधे को घर में सजा कर व संजोकर रखेगा। कोई भी उसे अपने ड्राइवर व कामवाली बाई को नहीं देंगे। साथ ही यह प्लाट (पौधा) महंगी भाजी के मुकाबले काफी सस्ता होगा।