निर्भया कांड के दोषियों ने समाज को किया बदनाम

निर्भया कांड के दोषियों ने समाज को किया बदनाम


अपने-अपने बच्चों को संभाले वो समाज, दिखाएं इनका आखिरी अंजाम


  नई दिल्ली। सात साल 22 दिनों के बाद दिल्ली के चर्चित निर्भया कांड का फैसला आया है। इस कांड के चारों दोषियों को 22 जनवरी को सुबह सात बजे फांसी पर लटकाने का फरमान सुना दिया गया है। इस कांड के चारों आरोपी सवर्ण समाज से हैं। इनमें से दो दोषी क्षत्रिय समाज से मुकेश सिंह और अक्षय कुमार सिंह हैं। वहीं शेष दो में से एक ब्रारमण समाज से विनय कुमार शर्मा हैं और एक वैश्य समाज से पवन कुमार गुप्ता है। जघन्यतम अपराध में शामिल होकर इन लोगों ने अपने-अपने समाज को कलंकित किया है। इनके समान अन्य समाजों के सामने विशेषकर अपने गांव या क्षेत्र में अवश्य ही लज्जित होंगे। इन लोगों के बुरे कामों से पूरा समाज कलंकित हुआ है तो अब इन समान के जिम्मेदार लोगों को चाहिये कि वह इस कांड के नतीजे अपने-अपने है होसमाज के जिम्मेदार लोग से सबक लेकर अपने बच्चों की देखभाल एवं मार्गदर्शन ऐसे करें कि जो हो गया, वो अब दुचारा न हो। समाज के जिम्मेदार लोग अपने-अपने बच्चों को अपने समाज की गरिमा, प्रतिष्ठा और व समाज के महान व्यक्तियों के बारे में अधिक से अधिक बतायें और इन दागी लोगों के इस खतरनाक अंजाम के बारे में बतायें ताकि वो यह सबक ले सकें कि वे स्वयं इस तरह का कोई काम करने से बचें जो उन्हें, उनके परिवार,कुल-गोत्र और पूरे समाज को बदनाम करता हो। साथ ही यह बतायें कि बुरे काम का चुरा नतीजा होता है, भले ही इसमें कितना ही समय लगे। यदि इन सभी समाजों ने इस निर्भया कांड जैसे जघन्य अपराधों से सबक लेकर अपने-अपने समाज को संभाल लिया तो पूरा देश ही सुधर जायेगा और महिलाओं के प्रति बड़ते अपराधों पर भी अंकुश लग जाएगा। बदनामी की एक बानगी इस कांड के एक दोषी के गंव वालों की प्रतिक्रिया से देखने को मिलती है।


निर्भया कांड के दोषियों में से एक अक्षय कुमार सिंह बिहार के औरंगाबाद जिले के टंडवा थाना क्षेत्र के कर्मा लहंग गांव का रहने बला है। इस गांव के लोगों की नजरें झुकी हुई हैं। यहां के लोगों को यह दर्द सत्ता रहा है कि इस गांव के एक चशिंदे के अपराध ने पूरे गांव और समाज के लोगों को नीचा दिखा दिया है। इस जाति के लोग तो दूसरे लोगों से नजरें तक नहीं मिलाने से कतराते हैं जबकि दूसरे समाज के लोग तो यह कहते हैं कि वे  कानून का पूरा सम्मान करते हैं, उनकी कुमार नजर में अपराधी तो अपराधी है। ग्रामीणों का कहना है कि अक्षय पाप कुमार के परिवार से अवश्य सहानुभूति है लेकिन दुष्कर्म और पाप में साथ नहीं दे सकते।


कम उम्र होना नहीं है जघन्य अपराध करने का सर्टिफिकेट निर्भयाकाउ में सबसे अचिकजवन्यतम संदेशबहुत ही गलत गया है। चर्चा यह गुप्त रखा गया। इस बाल अपराधी को अपराध करने वाले बाल अपराधी को है कि इससे तो कम उम्र वाले किसी भी मिलेकानूनी सरक्षणको देखते हुए इस इसलिएबख्श दिया गया कि उसकी उम्र तरह के जवन्य अपराध करने का काडमेशमिल एक अन्यदोषी पवन गुप्त जुवाइनल एक्ट के तहत 18 वर्षसेकम प्रोत्साहित हो सकते हैं। वह चाहे कोई ने भी दावा किया था कि इस कार के थी। जब उसने यह अपराध किया उस अपराधकर उसकी उम्र 18 वर्ष से कम समय वह 18 वर्षसेकमउम्रकाथा. उसे समय उसके स्कूली प्रमाण पत्र के होने के कारण इसीतरह बच सकता है। जानबूझकर फसाया गया है। उसे भी अनुसर उसकी उम्र 17 छह मह हालांकि निर्भयाकांड के समय खबरोम जुवेनाइल अपराचीकी तरहहीएकबार थी इसपर कोर्ट ने उसे अधिकतम सजा कहा गया था कि इस जघन्य कांडमे संवरने का मौका दिया जये। तीन वर्ष तक सुचार गृह में भेजने का सबसे अधिक हैवानियत तो इसी बाल काटने उसकीमंगकोखरिजकर फैसला किया। अपराधीने ही की थी। यदि यह सही है दिया। अब सवाल यह उठता है कि कम 20 दिसम्बर 2015 को उसे रिहा तो इस अपराची को समाज के सामने उम्र अपराध करनेका सर्टिफिकेट किसी कर दिया गया। इसके बाद दिल्ली के लान चाहिये था ताकि लोग उसको को टुकर्म एवं हत्या जैसे जघन्यतम महिलएवं बालकल्याण विभाग की ओर देखकर सतर्क रह सके। लेकिन इस अपराध करने की छूट नही देता। होना से उसे 10हजररूपये और एकसिलाई बल अपराधी के मामले में सारा कुछ तो यह ते यह चाहिये कि अपराधी को मशीन दी गई। चर्चाए है कि नियम उलटा ही हआ। जहां पेशी के दौरान अपराधकीजयन्यताकोदेखतेहएसज कानून के तहत इस बाल अपराधी को लाते-ले जाते समय उसका चेहरा ढका का प्रावधान किया जाए न कि उम्र को रिहा अवश्य किया गया लेकिन इसका गया, वही इस अपराधी का नाम-पताभी देखकर सरक्षण किया जाए।