वैलेंटाइन वीक: मीडिया और बिजनेसमैन का चलता है कारोबार
बढ़ रही फूहड़ता औरखत्म हो रहे अपने लाज-शर्म के संस्कार
• पूर हफ्ते युवाओं को गुमराह करता है मीडिया का प्रचार और होता मनमानी लूट का कारोबार
नई दिल्ली। इस देश के युवाओं को गुमराह कर पक्षिमी सभ्यता की फूहड़ता में झोंकने के लिए वैलेंटाइन डे का यह त्योहार मनाया जाता है। यह सिर्फ एक दिन 14 फरवरी को ही नहीं मनाया जाता बल्कि इससे पहले एक सप्ताह में अलग-अलग दिनों में अलग-अलग दिवस के रूप एक सप्ताह तक मनाये जाने वाले इस पर्व के लिए युवाओं को इतना अधिक प्रचार-प्रसार में उलझा दिया जाता है कि वो मानसिक रूप से विक्षिप्त हो जाते हैं। कभी कभी तो रोज डे को गुलाच का एक फूल एक-एक हजार रुपये में बेचा जाता है। चॉकलेट, लाल लहंगा, कान, व गिफट आईटम्स के दाम इन दिनों मनचाहे होते हैं। दुकानदार आने वाले ग्राहक की वेशभूषा और मनोदशा देखकर जमकर लूटता है। इन युवाओं को दुकान तक पहुंचाने का काम मीडिया करता है। इसमें प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया दोनों की बराचर की हिस्सेदारी होती है। प्रिंट मीडिया के साधनों समाचार पत्रों, मैगजीनों में इस वैलेंटाइन डे वीक के बारे में रोचक आलेख होते हैं जिनें पडकर युवा गुमराह होते हैं। इन आलेखों के साथ युवाओं की मनचाही वस्तुओं को बेचने वाले व्यापारिक संस्थानों के विज्ञापन भी होते हैं जिनमें युवाओं को आकर्षित करने के तमाम आकर्षक व लालचाने वाली स्कीम्स होती हैं। गर्लफ्रेंड/ब्वायफ्रेंड विहीन युवा समझता है अपने को उपेक्षित आज समान की स्थिति इतनी विकृत हो गई है कि पहले नहीं लड़की व लड़के की मित्रता को समाज में हेय दृष्टि से देखा जाता था, वहीं आन वातावरण इसके विपरीत है। जिस लड़की के एक भी ब्वायफ्रेंड नहीं है या जिस लड़के के किसी लड़की से अन्तरंगता न हो उसे समाज में ऐसी निगाहों से देखा जाता है जैसे वह समाज से उपेक्षित है। वही सबसे ज्यादा ब्वायफ्रेंट वा गर्लफ्रेंड जिस गुवा के होते हैं उसे इस युवा समान में इतना सम्मान दिया जाता है जैसे उसे पद्मश्री पुरस्कार मिल चुके हैं। युवा समान में आन स्थिति इतनी विचित्र हो गई है कि कहीं- कहीं यह भी देखा जाता है कि यदि किसी के पास एक से ज्यादा बॉयफ्रेंडागर्लफ्रेंड है और उनका कोई निकटतम मित्र, इससे वंचित है तो फ्रेंड से सम्पन्न मित्र, अपने दोस्त को आनलाईन करने के लिए, अपने कोटे से एक-दो बॉग/गर्ल फ्रेंड ट्रांसफर कर देता है ताकि उसका दोस्त भी समाज में सिर उठाकर कह सके कि उसके भी गल/चॉयफ्रेंड है। इस तरह की भयावह स्थिति भारत की संस्कृति के अनुकूल नहीं है। इस तरह का वातावरण तो विदेश में होता है लेकिन समस्या यह है कि जो भी इस सन्दर्भ में अपने विपरीत विचार रखता है उसे ही ऐसा देखा जाता है जैसे 'आउटडेटेड' है। युवा तो कुछ समस्या से ग्रस्त है और बड़े चुनर्ग आन पहले की तरह सक्षम नहीं रहे हैं। वह वृद्धावस्था में बच्चों के आश्रित होकर रह गये हैं। इसलिये वो विरोध करने की ताकत खो चुके हैं। जो कुछ प्रभावशाली चुनर्ग बचे भी हैं तो उनकी संख्या कम व एकजुटता नहीं है। इसलिये पशिमी सभ्यता हमारी संस्कृति व सभ्यता के ऊपर हावी होती जा रही है।
क्यों मनाया जाता है वैलेंटाइन-डे
जाता है जैसे वह समाज से उपेक्षित है। वही सबसे ज्यादा ब्वायफ्रेंट वा गर्लफ्रेंड जिस गुवा के होते हैं उसे इस युवा समान में इतना सम्मान दिया जाता है जैसे उसे पद्मश्री पुरस्कार मिल चुके हैं। युवा समान में आन स्थिति इतनी विचित्र हो गई है कि कहीं- कहीं यह भी देखा जाता है कि यदि किसी के पास एक से ज्यादा बॉयफ्रेंडागर्लफ्रेंड है और उनका कोई निकटतम मित्र, इससे वंचित है मनाया जाता है वैलेंटाइनयह दिनथा 14 फरवरी, जिसे बाद में इस संत के नाम से वैलेंटाइन डे मनाया जाने लगावेलेंटाइन-डे के बहानेपुरे विश्व में निःस्वार्थ प्रेमका संदेश फैलायाजाताहै। साल 1260 में संकलित की गई 'ऑरिया ऑफ जैकोबस डी वॉराजिन' नामक पुस्तक में संत वेलेंटाइनकावर्णन मिलता है।जय तीसरी सदी थी तो रोम मैक्लॉडियसनम के राजाकाराज हुआ करता था। क्लॅडियस मानते थे कि विवाह करने से पुरुषों का दिमाग और शक्ति दोन ही खत्म हो जाती है। इसी संचके साथ क्लोडियसने पूरे राज्य में यह आदेश जारी कर दिया कि उसके जितने भी सैनिक और अविकारी है वे विवाह नहीं करेंगे। संत वैलेंटाइन ने क्लेडियसके इसकूर आदेशका विरोन किया सथहीपुरे साम्राज्य में लोगों को शदी करने के लिए प्रेरित किया। सत वैलेंटाइन ने रोग में कई सैनिको और अधिकारियों की शादी करवाई। क्लॉडियसने जब अपना विरोध देखाते वेसहनासका, उसने 14 फरवरीसन 1269 में संत वैलेंटाइन को फांसी पर चढवा दिया। तब से उनकी याद में वेलेंटाइन डे मनाया जाता है।