दिल्ली में तीसरी बार बनी केजरीवाल सरकार
बनिये को बनिया मारे,या मारे करतार...
.दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवालव केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह (जैन), दोनों हैं वैश्य समाजसे!
गाजियाबाद। बड़े-बुजुर्गों से उपरोक्त कहावत सुनते आये हैं कि वैश्य समाज का व्यक्ति अपनी बुद्धि से अपना काम निकाल कर ले जाता है, उस काम को कराने में बेशक इसे कुछ धन ही क्यों न खर्च करना पड़े लेकिन वह सभी फार्मूले लगाकर अपने काम को करा लेता है। इसलिये वैश्य समाज के आदमी के रुकते नहीं हैं। लेकिन कभी-कभी स्थिति इतनी विचित्र हो जाती है, जितनी दिल्ली चुनाव में हो गई। जहां दोनो ही पक्षों का नेतृत्व वैश्य समाज के पास ही था। इधर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल तीसरी बार दिल्ली की सत्ता पर काचिन होने के लिये लड़ रहे थे तो वहीं भाजपा के चाणक्य कहे जाने वाले, पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं वर्तमान में केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह, केनरीवाल को दिल्ली की सत्ता से दूर करने के लिये अपना सब कुछ दांव पर लगा चुके हैं। संयोग से अमित शाह भी गुजरात से वैश्य (जैन) हैं। अमित शाह ने भी दिल्ली विधानसभा चुनाव को अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न मानते हुए, भाजपा संगठन को पूरी ताकत झोंक दी। चुनाव के अन्तिम सप्ताह में तो राष्ट्रीय अध्यक्ष, प्रधानमंत्री एवं गृहमंत्री भाजपा शासित पांच राज्यों के मुख्यमंत्री, 280 सांसद, हरियाणा व राजस्थान के सभी विधायकों सहित उत्तर प्रदेश के विधायक व मंत्रियों को भी दिल्ली में तैनात किया हुआ था। लेकिन भाजपा द्वारा सब कुछ झोकने के बाद उनकी सीटों में मात्र पांच की वृद्धि हो पाई। इस तरह इस वर्ष दिल्ली विधान सभा में वामुश्किलs तक की गिनती हो पाई। कहा जाता है कि इस बार केजरीवाल भी इस चुनाव में पहले की तरह आक्रामक नहीं रहे बल्कि शालीनता व सहजता के साथ जनता में जाकर अपनी बात व अपना किया हुआ काम रखते रहे। वहीं दूसरी और अमित शाह व उनकी टीम अरविंद केजरीवाल पर आक्रामक रही। यहां तक उन्हें आतंकवादी भी कहा गया। बताया जाता है कि केजरीवाल की रणनीति को बनाने के पीछे प्रशांत किशोर का भी साथ रहा है। वह भी केजरीवाल को समय-समय पर पब्लिक में बोलने के गुर सिखाते रहे तथा केवल अपने किये गये कार्यों को ही जानकारी देते रहे। जब दोनों ही तरफ वैश्य समाज के प्रभावशाली व्यक्तित्व जुटे हो तो लाड़ाई स्वर्ग में रोचक हो जाती है। केजरीवाल के साथ इस बार गुप्त रूप से सहयोग दे रहे रणनीतिकार प्रशांत किशोर भी वैश्य समाज से आते हैं। कहते हैं कि दिल्ली चुनाव, वामुश्किलs भाजपा की तरफ लगातार आक्रामक रुस आप पार्टी द्वारा पहले चुनावों के मुकाबले भाजपा के हमलों का कोई सीधा जवाब न देकर अपने द्वारा किये गये कार्यों का लेखा जोखा देते रहे। भाजपा आप की इस चाल को समझ नहीं पाई और चक्रव्यूह में फंस गई। इसलिये शायद पुराने लोगों ने यह कहावत सुनाई। बनिये को बनिया मारे, या मारे करतार।