एम.एल.सी.होते हैं ज्यादा पावरफुल

एम.एल.सा.स्नातक व स्नातकोशक्षक एम.एल.सा.चुनाव


एम.एल.सी.होते हैं ज्यादा पावरफुल


अगले सप्ताह किसी भी दिनजारी हो सकती है अधिसूचना बत्तीस लाख 42 हजार स्नातकों में से कुल 2,96,159 वोटर पूरे प्रदेश में स्नातकव स्नातक शिक्षक कोटे से चुने जाएंगे एमएलसी


गाजियाबाद। प्रदेश में विधानसभा से उच्च एक और सदन भी होता है, जिसे विधानपरिषद कहते हैं। प्रदेश में जो भी बिल स्वीकृत होता है, वह विधानसभा के बाद विधानपरिषद में स्वीकृति हेतु जाता है। विधानपरिषद से स्वीकृत होने के बाद ही राज्यपाल के हस्ताक्षर होकर वह कानून बनता है। देश में केवल छह राज्यों में ही विधान परिषदों का गठन हुआ है। उत्तर प्रदेश में विधानपरिषद के पास वही शक्तियां होती हैं, जो प्रदेश में विधान परिषद केन्द्र में लोकसभा के बाद राज्यसभा के पास होती है। इस तरह वही शक्तियां प्रदेश में सदस्य विधानपरिषद, विधानसभा (एमएलए) से अत्यन्त शक्तिशाली होता है। साथ ही एमएलसी कार्यकाल भी बगैर किसी व्यवधान के छह साल तक चलता है। प्रदेश में सरकार गिरने या नई सरकार गठित होने से विधान परिषद सदस्यों के कार्यकाल पर कोई प्रभाव नहीं होता है। उत्तर प्रदेश के विधान परिषद में कुल सदस्यों की संख्या 100 है। विधान परिषद सदस्य का चुनावसीधे जनता द्वारा नहीं किया जाना बल्कि जनता द्वारा चुने गये विधानसभा सदस्य (विधायक) हो, विधान परिषद सदस्यों का चुनाव करते हैं। इसी विधान परिषद में 16 विधान परिषद सदस्यों का चुनाव, प्रदेश में स्नातक व स्नातक शिक्षक करते हैं, दोनों विधान परिषद सदस्यों की संख्या आठ-आठ होती है। स्नातक विधान परिषद सदस्य प्रदेश के स्नातक करते हैं। यह सदस्य, विधान परिषद में स्नातकों का प्रतिनिधित्व करते हुए उनके शिवा तथा रोजगार संबंधी अधिकारों की रक्षा करते हैं। इसी तरह स्नातक शिक्षक कोटे से बने विधान परिषद सदस्य (एम.एल.सी.), स्नातक शिक्षकों का उच्च सदन में प्रतिनिधित्व करते हैं। प्रदेश में लगभग दो मण्डलों पर एक स्नातक एम.एल.सी. तथा एक शिक्षक स्नातक एम.एल.सी. चुने जाते हैं, जिन्हें निर्वाचन क्षेत्र के अन्तर्गत पंजीकृत स्नातक अपना वोट देते हैं। इस बार 2020 में स्नातक एम.एल.सी. एवं स्नातक शिक्षक एम.एल.सी. सहित दोनों के चुनाव होने निश्चित हैं। पिछले सत्र 2014 में चुनाव हुए थे। इस बार भी मेरठ व सहारनपुर मण्डलों के अधीन 9 जिलों के स्नातक व स्नातक शिक्षक इस चुनाव में मतदाता होंगे। दोनों मण्डलों के अन्तर्गत सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, शामली, बागपत, मेरठ, गाजियाबाद, गौतमबुद्धनगर, हापुड़ व चुलंदशहर आते हैं। इन 9 जिलों का प्रतिनिधित्व विधानसभा में 44 विधायक करते हैं तथा लोकसभा में इस क्षेत्र से नौ सांसद चुनकर लोकसभा भेजे जाते हैं। दूसरे शब्दों में, चौचालीस विधायकों और नौ सांसदों के कार्यक्षेत्र पर एक विधानपरिषद स्नातक व एक विधान परिषद स्नातक शिक्षक चुना जाता है। इससे ही इस विधान परिषद सदस्य के महत्व तथा उसकी जिम्मेदारियों की झलक स्पष्ट होती है।


...तो स्नातकवोटरों की स्थिति और शर्मनाक होती


दुखद विषय वह है कि पढ़े-लिखेस्नातक अपना प्रतिनिधितुनने के प्रति कितना उदासीन है, इसकाप्त आपको इसबत से लगजाएगा किनी जिलों मेस्नातकों की कुल संख्या लगभग 32,42000 बताईजाती है जिसमेसेमात्र 2,96,159 स्नातकोने अपनावेट बनवाने में रुचि दिखाई है।जो कि क्षेत्र के कुलस्नातकोकालगभग 9 प्रतिशत है। स्थिति भी तब है जब स्नातक एमएलसी का चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों द्वारा दोनो मण्डल के स्नातकों के वोट बनवाये तथा प्रत्याशियों द्वारा स्वयस्नातकों के पर जकर अच्चा अपने प्रतिनिधि भेजकर उनसे घर बैठे प्रमाणपत्र लिये हैं और और इन प्रत्याशियों ने हीस्वर्वआवेदन पत्र भरवाकर उनके वोटकमवाये हैं ।ताजाकर का आकला प्रतिशत तक पहुंच पाया है। यदिस्नातकस्वयं निर्वाचन कार्यालयजाकर अपनेवोट बनवाते तो मौजूदा 32,42000 स्नातको मेसेदो-तीन प्रतिशतमतदाताबम पाते तब यह स्थिति और शर्मनाक होती।यहीवोमतदाता स्नातक है जो शिक्षावरोजगर के क्षेत्र में उचित नीति नबनाने पर सरकार को मुह भर-भर करगली देते हैं।