अल्पसंख्यक ,संविधान मौन!
देश के 8 राज्यों में हिन्दू अल्पसंख्यक होकर भी बहुसंख्यक
देश के नई दिल्ली। भारतीय संविधान में अल्पसंख्यक को परिभाषित नहीं किया गया है जबकि आजादी के बाद से अब तक देश की राजनीति में अल्पसंख्यक कार्ड खेला जा रहा है। अब तक सरकारों ने अपनेअपने स्वार्थ को देखते हुए अल्पसंख्यकों के नाम पर आयोग, बोर्ड, कमीशन, मंत्रालय, वनीफे, एजूकेशन लोन, सब्सिडी जैसी सरकारी योजनाओं का ऐलान किया ना चुका है। अल्पसंख्यक नाम पर काफी अरसे से बहस चल रही है और सुप्रीम कोर्ट में मामले दायर किये ना चुके हैं, आरटीआई के माध्यम से सरकार से भी पूछताछ की जा चुकी है लेकिन कहीं से भी इस बारे में कोई संतोषजनक जवाच नहीं मिल सका है। अब नच केन्द्र में सत्तारूढ़ नरेन्द्र मोदी सरकार द्वारा लाये गये नागरिक संशोधन कानून (सीएए) के बाद से इस विषय पर पूरे देश में बहस सी छिड़ गई है। इस बारे में संविधान की धारा 14, 21, 29 और 30 का हवाला दिया जा रहा है। आज देश में अल्पसंख्यक नाम लेते ही मुसलमानों का चेहरा सामने आता है। बहुसंख्यकों के नाम पर हिन्दू सामने आते हैं जबकि हकीकत यह है कि भारत का संविधान 'अल्पसंख्यक' शब्द को परिभाषित ही नहीं करता है। अल्पसंख्यकों के नाम पर संविधान में धर्म और भाषा के आधार पर सभी अल्पसंख्यकों के मौलिक अधिकारों के संरक्षण की बात कही गई है। संविधान द्वारा मूल रूप से सात मूल अधिकार प्रदान किए गए थे-समानता का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार, शोषण के विरुद्ध अधिकार, धर्म, संस्कृति एवं शिक्षा की स्वतंत्रता का अधिकार, संपत्ति का अधिकार तथा संवैधानिक उपचारों का अधिकार। हालांकि, संपत्ति के अधिकार को 1978 में 44वें संशोधन द्वारा संविधान के तृतीय भाग से हटा दिया गया था। इन धाराओं में किसी तरह से किसी भी अल्पसंख्यक को वजीफा, लोन, एजूकेशन लोन व सब्सिडी देने की बात नहीं कही गई है। अल्पसंख्यक मामले में सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने वाले सुप्रीम कोर्ट के कई वकीलों का भी कहना था कि भारत के संविधान में अल्पसंख्यक शब्द को कोई परिभाषा नहीं है, भारत के किसी भी कानून में अल्पसंख्यक शब्द की विस्तृत व्याख्या नहीं की है, भारत में अल्पसंख्यक कौन सी जाति है। इसके बावजूद 1992 में अधिसूचना जारी करके 1993 में अल्पसंख्यक आयोग बन गया। 2006 में अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रालय भी बन गया। अल्पसंख्यकों को भत्ता दिया जा रहा है, लोन दिया जा रहा है, एजूकेशन लोन दिया जा रहा है। अल्पसंख्यकों के कल्याण के लिए बहुत सारी योजनाएं चल रहीं हैं।
अल्पसंख्यक होकर देशमें आर्थिक आधार पर मिलेंसविधाएं देश में सरकार और अल्पसंख्यक आयोगद्वारा मौजूदा समय में सरकारी योजनाओकालभअभीधर्मकै आधार पर मुस्लिम बैद्ध, जैन, ईसाई और सिख कोवर्मिक आवरपर दियज रहाहाजबकिका संविधानकीवाराओं के विपरीत है। इसकी जगह पर इस तरह कीयोजनाओकालाभउसव्यक्ति को मिलना चाहिये जो व्यक्ति सरकार कीगरीबीरेखके नीचे हो, नाकिजति वधर्म के आधार पर मिले।
संविधान को ठेंगा दिखा रहे हैं ये राज्य सविधान में अल्पसंख्यक शब्द की परिभाषा भले हीनकी गई हो लेकिन चारा 30 के तहत भारतीय नागरिको के चार्मिक एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अविकार दिया गया है। इसमें संविधान ने धर्म और भाषा के आधार पर न्यून संख्या वाले को यह अविकार दिये गये है। इसमें कहीं भी हिन्दु मुसलमान, सिख, ईसाई,पारसी, बौद्ध और जैनकावर्णन नहीं किया गया है। इसलिए इन आठ राज्यों में हिन्दुओं की संख्या धर्म और भाषा के आधार पर कम है, फिर भी इन राज्यों की सरकारों ने इन हिन्दुओं को अत्यसंख्यक दर्जनहीं दिया गया है और नही अल्पसंख्यकों को मिलने वाली सुविचार हीदी है। केन्द्र स्तरपर जिन छह समुदाय को अनेक योजनाओं का लाभ मिल रहा है वही इन राज्यों में अल्पसंख्यक होने के बावजूद हिन्दुओं को कोई लाभ नहीं दिया जा रहा है बल्कि बहुसंख्यक आबादी को वो सारी सुविधर मिल रही है। ये संविधान के प्रदत कानुन की भावना का सीधा उल्लघन है।