मेरी राय
भाई,ये शादी है या...
भाई,येशादीहैयाशादियों का सीजन चल रहा है। सामाजिक दायित्व होने के कारण, अक्सर अधिकतर किसी न किसी शादी में जाने का अवसर प्राप्त होता है। आजकल की शादियों में अतिथियों को बढ़ती संख्या को देखकर कई बार यह नहीं लगता कि हम वास्तव में किसी शादी में अये हैं। बल्कि कभी-कभी तो लगता है कि जैसे शादी की बजाय ऐसी रैली में पहुंच गये हैं जो धन-सम्पदा सम्पन्न पार्टी द्वारा आयोजित है और जैसे बेशक भीड़ का एक हिस्सा हों लेकिन हमारा उद्देश्य केवल भोजन ग्रहण करना मात्र हो। यह कई बार यह उद्देश्य भी तब अधूरा रह जाता है जब चाट व खाने के स्टालों को चारों ओर से अपार भीड़ घेरे हुए होती है। किसी-किसी शादी में तो चाट के कुछ स्टालों तक पहुंचते-पहुंचते हर समय यह डर लगा रहता है कि किसी के चाट के पत्ते की सौंठ टपक कर कहीं हमारे कपड़ों पर चित्रकारी न कर दे। शादियों में इस तरह की धमा-मुक्की गोलगप्पे, चीले , मटर कुल्चे आदि चाट के स्टालों पर ज्यादा देखने को मिलती है। टिकिया, पाव-भाजी, मूंग की दाल, आदि तो लगभग तैयार ही रहती है। इसलिये इन स्टालों पर कम जमावड़ा देखने को मिलता है। कई शादियों में तो भीड़ गेट से शुरू होती है और डायनिंग हाल व चाट के खोमचे तक पहुंचते-पहुंचते सिर ही सिर दिखाई देते हैं।
आज की शादियों में न तो मेनचान को अतिथि से खाना खाने के लिए गुहार करनी पड़ती है और ना ही अतिथि को भी इस बात का इन्तजार रहता है कि कोई उससे खाना खाने के लिए कहेगा। वह अतिथि भी अन्दर घुसकर बगैर कोई औपचारिकता किये , इस तरह चाट व खाने पर टूट पड़ता है जैसे उसे शादी-वादी से क्या मतलब है, उसको तो केवल खाना गृहण करना है। मेजबान तो खाना सजा कर, गेट पर विरानमान हो जाता है, ये आपकी जिम्मेदारी है कि आप कोलम्बस या वास्कोडिगामा बनकर उसकी खोज करें, उस बेचारे मेनबान को तो अन्दर जाने को फुर्सत ही जब मिलती है जब सारे मेहमान खाना खकर निकल जाते हैं।
वैसे भी मेनचान को तो, गेट पर कई तरह की जिम्मेदारियां निभानी पड़ती हैं, जैसे सभी अतिथियों के साथ फोटो खिंचवाना, उनसे ससम्मान लिफाफा प्राप्त करना तथा जाते समय उनसे भोजन की तारीफ सुनना व उसके बाद उन्हें भाजी का डिच्चा देना। इस तरह की शादियों को देखकर, तो कभी-कभी यह कहने का दिल होता है कि आपने शादी रचाई है या रैली बुलाई है।
मेरी राय है कि अब बहुत हो चुका। अब तो शदियों में पहले की तरह, परिवारिक मित्रों, रिश्तेदारों वनजदीकी पड़ोसियों कोही आमत्रित करन चाहिए। आज जिस तरह से बड़ी शदियों का प्रचलन बढ़ गया है, उसका नुकसानतो मेजवान को होता है। जिसके दिल में सारी जिन्दगी यह मलालतो रहता नुकसानतो मेजवान को होता है। जिसके दिल में सारी जिन्दगी यह मलालतो रहता है किवह तो पूरे फंक्शन में मेहमानों को रिसीव करनेवविद करने में ही लग रहा। शादी को तो एंजाय कर ही नहीं पाया।
ऐसीशादिय का असली फायदाइवेंट एजेसिया, केटरर्स, फार्महाउस एवं बैंकट हालवाले उठा रहे हैं।जहां गाजियाबाद मे ही 1500 रुपये प्रतिप्लेट से खना शुरू होकर चार-पांच हजार रुपये प्रतिप्लेट तक जता है। दिली. गुरुग्राम वदूसरे महंगे वैकटों में तो अधिकतम दाम की कोई सीमा ही नहीं है। ऐसे में जब शादीएक रैली में बदल जाती है तो उसमें अन्न की तो बर्बादी होती ही है। साथ ही इससे कैटरर्स की बहूत बंदीहोती है। अब वक्त आगया है कि हमें इसपर विचार अवश्य करना चाहिए कि हम शदियों को परिवारिक आयोजन तक सीमित रख पायें।प्रतिस्पर्धा में पड़कर शादियों का वास्तविक स्वरूप खराब होने से बचाने का भी हमारा दायित्व है।