मेरी राय .

मेरी राय .


..तो इसीलिये भारत में निडर हैं अपराधी


में निडर हैंअपराधी यदि हम अपने देश के अलावा दुनिया के दूसरे सभी देशों से तुलना करें तो पायेंगे कि जितना उदार भारत का कानून अपराधी के लिये है, ऐसा दुनिया के किसी देश में नहीं है। यही कारण है कि आज हमारे देश में रोन अपराध बढ़ रहे हैं। हमारे देश का नागरिक भले ही विकृत अपराधी प्रवृत्ति का हो लेकिन उसकी हिम्मत नहीं है कि दुबई या दूसरे किसी इस्लामिक देश में जाकर सिर भी उठा सके, क्योंकि उसको मालूम है कि यहां कोई एपी सिंह नामक वकील उसे बचा नहीं पायेगा। यहां तो अपराधी को सार्वजनिक रूप से कठोरतम सजा मिलनी जरूरी है। उसमें सजा-ए-मौत अथवा अंग-भंग की सजा देना सामान्य बात है। साथ ही ऐसी सनाएं, अपराधी को उसके कुकृत्य से अधिकतम तीन माह में निश्चित रूप से मिल जाती हैं। दुनिया के दूसरे देशों में भारत से एक बात और भिन्न है। वहां पर किसी भी पार्टी का नेता जाति व धर्म की आड़ लेकर अपराधी की पैरवी नहीं करता, उन्हें केवल अमूक व्यक्ति में एक ऐसा अपराधी नजर आता है जिसे पूरा देश एक पंक्ति में खड़ा होकर भीषण सजा देने की सिफारिश करता दिखाई देता है। अब ले लीजिये अपने देश के कानून को जहां 2004 के बाद सामूहिक बलात्कार और उसके बाद निर्मम हत्याएं तो लाखों हो चुकी हैं लेकिन पशिमी बंगाल के धनंजय चटनी को फांसी होने के बाद आज तक देश में दूसरी फांसी नहीं हुई है, आखिर क्यों? कभी किसी ने सोचा है जबकि सुबह जब आप अखबार खोलते हैं तो शायद ही कोई ऐसा दिन जाता होगा जिस दिन आपके आस-पास के क्षेत्र में कोई बलात्कार व हत्या न हुई हो। पूरे देश की तो बात ही छोड़ दें। इसी से हमको समझ में आ जाना चाहिए कि जहां अपराध रोज हो रहे हैं और सजा पन्द्रह साल के बाद किसी को नहीं हुई है, उस देश में अपराधियों के हौसले बड़ेंगे या कम होंगे? 


निर्भया सामूहिक बलात्कार व हत्याकांड से पूरा देश, 16 दिसम्बर 2012 को दहल गया था। देश का कोई शहर नहीं बचा था कि जहां, धरने, प्रदर्शन, रैली, कैडिल मार्च निकालकर इन छह अपराधियों को तुरन्त सार्वजनिक रूप से फांसी दिये जाने की मांग न की गई हो। पूरे देश के लिए कितनी शर्म की बात है कि आज सात वर्ष से न्यादा हो गये हैं और वह अपराधी फांसी की सजा पाने के बाद भी, कानून को अंगूठा दिखाकर चिढ़ा रहे हैं। दो बार जितने डेथ वारंट भी जारी हो गये लेकिन हर बार कोई न कोई कानूनी पेचीदगी निकालकर उनके विद्वान वकील साहब ए.पी. सिंह, बचाकर ले जाते हैं, सुप्रीम कोर्ट देखता रह जाता है। पूरे देश को, विशेषकर निर्भया की उस अभागी मां आशा देवी को तो उम्मीद थी कि एक फरवरी को उसके दिल में थोड़ी ठंडक जरूर पड़ेगी। जब आशा देवी बिलकुल टूट गई और उन्होंने रोते हुए कहा कि अगर ऐसा ही होता है तो कानून की किताबों को जला देना चाहिए।


रीराय है किदोबारइनपिशावे की फांसीटलने सेजहादेशके नागरिकों का कानून से विश्वास हिंगा है, वहीं अपराधियों के हौसले बढ़ गये होंगे। उन्हें यह स्पष्ट हो चुका होगा कि वह देशमें चाहेही कितना बड़ा अपराध करले लेकिन चिन्तित नही होना चाहिये क्योंकि हमारे देश के कानून में अपराधियों के लिए इतने मानव अधिकारदिये गये हैं जिनकालाभकोई भीए.पी.सिह उठाकर उन्हें अवश्य सजा से बचा लेगा। गाजियाबाद में इसीतरह निठारीहत्याकांड के सुरेन्द्रकोलीकोपाचवार फासी की सजा हो चुकी है। एक बार तो उसको फासीपर लटकानाथलेकिनरात नौ बजे अदाला ने उस मानव के अधिकार को सर्वोपरि मानो हुए. फांसी की सजा ऐसी टाली कि आज लगभग 3 साल तक दुवारा अदालत में तारीख भी नहीं लगी है। मेरी स्पष्ट राव है कि देश के कानून में संशोधन करके अपराधी के प्रति उदारव उनके मानव अधिकार कारुख समान नहीं हुआ तो देश में कानून के प्रति अपराधियों का खौफ समाप्त हो जायेगा हमें देश में अपराध समान करने हेतु विदेश की तरह अपराधियों के विरुद्ध सख्त कानूनलगुकरने होंगेवरना हमारे देशकी जेले अपराधियों के लिए छोटीपड़ने लगेगी और देश में आम नागरिको काजीना मुहाल हो जाएगा।


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